पंडित जवाहरलाल नेहरू | Pandit Jawaharlal Nehru

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Pandit Jawaharlal Nehru by जवाहरलाल नेहरू - Jawaharlal Neharu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ ५ को १ पेन की आवश्यकता है दूसरा निष्मयोजस द्रत লে সি ~ ५५ ६ ডি ৮ +^ ^ ^ १ धेनः पेन मुझे ले लेना चाहिये” और उसी विचार के साथ ही एके पेन: এ इनकी जेब में पहुंच गया | রি ৮৫ जब पं० मोतीलाल जी आये ओर उन्होंने दो पेनों के स्थान पर एक ही पाया तव तो दूसरे पेन की खोज की जने लगी । वालक जवाहर कोई चोर तो था ही नदीं कि वह्‌ उस पेन को छिपाने का प्रयत्त करता । पेन मिल गया, साथ ही अप- राधी मी | पं० मोतीलाल जी ने इस घटना को असाधारण रूप दे दिया और क्रोधावेश में आकर इन्होंने वालक जवाहर को मारते २ ज्ञत-विक्षत कर दिया। तदनन्तर दुःखी और पीढ़ित प्राणी को एक मात्र आश्रय माता की अंकस्थली में जाकर ही उस ताड़ना से मुक्ति मिली । पर्याप्त समव की उद्चर्य्या के अनन्तर वालक के ছাল মই ओर वह पूर्ण स्त्रस्थ हो पाया । इस घटना के अनन्तर च. स्वाभाविक ही था कि वालक पिता से भयभीत रहने लगा। यद्यपि वह उनका अत्यन्त सम्मान करता था उनके प्रति किसी भी प्रकार की अवहेलना का भाव भी उसके ढेदय में नहीं आसकता था किन्तु पुनरापि उनकी ओर दृष्टि डालने में भी घवराता घा। आर यद्ग-छ॒दा तो उनकी उपता से हुःखी होकर भाग खड़ा होता आर परम शान्तिद्ययिनी माता की अंक में जाकर शान्ति की ग्राप्ति करता । निस्सन्देह बालक जवादर की दृष्टि में उसकी माता सुन्दर सुखद दया की साज्ञात्‌ प्रतिमा थी ओर उसके निकट पहुंच कर वह सारे হা জী মূল जाता था।




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