मेरी जेल डायरी | Meri Jail Dayari

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Meri Jail Dayari by जयप्रकाश नारायण - Jai Prakash Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जेल डायरी 1975 जुलाई, 21 मरे चारा ओर सब टूटा बिखरा पडा है। नहीं जानता कि अपने जीवन-काल में वतमान समाज को फिर से सवारा हुआ देख पाऊंगा कि नही । शायद मरे भतीजे और भतीजिया एसा देख पाए 1 शायद 1 लोक्तत्न के चहुमुखी विकास तथा विस्तार के लिए मै प्रयास करता रहा हू। इसके लिए लोक्तत्र की प्रक्रिया मे मैं पूरी तरह जनता को निरन्तर साथ लेकर चलने का यत्न करता रहा हू । इसके दो तरीके है 1 एक, हमे किसी एेसे सत्र कौ व्यवस्था करनो चाहिए जिसवे भाध्यम से उम्मीत्वारों को चुनत समय हम जनता से परा मश प्राप्त कर सकें। दूसरे पहले तरीकों वी भाति तत्न की व्यवस्था करके जिसके माध्यम से जनता अपने प्रतिनिधियों पर निगरानी रख सके और उनसे ईमानदारी के साथ काम फले की माग कर सके । यही वे दो मूल तत्त्वथे जो में विहार के इस सघप पूण आदोलन से प्राप्त करना चाहता था और आज वहा मैं लोक सश्र कै हनन के साय अपनी ल्पना का हनन होते दख रहा हू।




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