काल - भैरवी | Kal - Bhairavi

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Kal - Bhairavi by रामनिवास शर्मा - Ramnivas Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाल भेरदी १५ उस दिन ददान बरने के दाद मै वी पूरी छुपा हो गई। दो चार टित बाद आना-जाता हाता ही रहता। वहा जाने पर घडी-दी घडी वा भातूम दी नह पडता ) धम-क्म घौ «ते होती रहती | घमन्वम के साथ खरो खोटी भी चज़ती। यदि कभी अधिक काम के वारण जाना नहीं হালা तो भरू याद करके बुला लेता । अब उससे भय नही লমলা 1 रात या दिन कभी नी जाओ या आओ वह वावाता बस ही ठेने देता । पर यह बात समझ मे नही आती कि वह कमा आदमी है ?े बह बालता है ता झकता नहां। चुप हा जाता है तो गूया ही व॒ना रहना । हा-हू भी नही वरता । पूछते पर सर हिला देता है । उसे कौन समफावे? किमी की अकद थाड़े ही निवली है जो उसे कुछ कहे । बातें करता है ता अ्रमित्त वी-मी । काई बात्त कहा वी और कोई वही वी ॥ धरती की बातें करता करटा आसमान की करन लगता है 1 कल की बातो म नाज दी बातें मिला देना हे! कौर उदकी वातं सपमना चाहैतों उसके पत्त्र एक अक्षर भी नहीं पडने का। भरू का मन आधा था पर अव्यत मधुर । उसके पास बठने के बाद उठने को दित करता ही नही |




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