भारत में राजनीति | Bharat Mein Rajniti
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
364
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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विभिन्न वगहितों का समुच्चयन मात्र होता ই । इस प्रकार हमने राजनैतिक
विकास के भारतीय प्रयोग को ठीक ढंग से समझने वी कोशिश की है। इससे
आय विवासमान देशा के राजनैतिक विकास को समसने में भी वुछ मदद পিল
सकती है ।
जप हम किसी समाज वे विवास की प्रक्रिया को अपने सामने होते हुए देखते
है, तो हमें इसे इस समाज वे सदस्या की नियाह से, खासकर उन लोगा वी निगाह
से देखता चाहिए जो इस विकास-प्रत्निया वे सचालक है । इसमें हरमे दौ वाता पर
घ्यान देना होगा, जिनवी अक्सर उपक्षा कर दी जाती है, एक सस्यागत विश्लेषण
और दूसरे नेता या अगुआ वर्ग की भूमिका । इस प्रकार भारतीय व्यवस्था का
विवेचन करते समय हमे राजनैतिक सस्थाजा को मूत सामाजिक और आधिक
गतिविधियां को समाविष्ट करने वाला एक तरह् का ढाचा मान ने समझ लेना
चाहिए ॥ इसी तरह यह न समझ लेना चाहिए कि नेताओं का काम जनता की
मांगा को सरकार तक पहुचाना और उनकी पूर्ति कराना मातर है। वास्तव में सारी
प्रक्रिया की शुरुआत एक सर्वेघानिक जौर राजातिक व्यापक ढाचे की स्थापना से
होती है, जो नेताजो मे प्रयत्ता से समाज के विभिन्न स्वरो म प्रवेश करती है,
जौर तव नमश उसके जबाब में नीचे से नए गठबधना या व्यूहो की रचना होती
है । इस प्रकार अगुआ या नेता और सस्थाए जीवन के प्रत्येक क्षेत में -यापक परि
वतन के माध्यम वन जाते है और विभिन्न स्तरा पर नयी चेतना क1 जम देते हैं
और नयी झवितियों का मँंदान में लाते ह् । वे राष्ट्रीय व्यवस्था के' एकीकरण, संग
उन भौर विविवीकरण में सहायक होत है । इस स्थिति मे राजनीति एक महा
रचनात्मक शविति का काम क्रती है, जो प्रतिनिधित्व की मशीनरी यातत मान
नही होती जौ बाहरी दवाव पर काय करे ओर विभिन हिता वे समुच्चयत का
मौका दे।
वुलनाप्मक राजनीति के हाल के ग्रथा में यह माना तो जाता है कि राजनीतिक'
प्रक्रिया का सामाजिक ढाचे और मूल्या को बदलने म बडा हाथ होता है, फिर भी
पुरानी भ्रातिया बनी रहती हैं । एक आ्राति का मूल धमनिरपक्षता का वह अस्पष्ट
सिद्धात है जो जातिसस्था का स्वरूप ठीक से समझने में विफल हो कर यह मानता
है कि विकास का कम अमिवायत साप्रदायिक से स्वच्छिक सगठन के रूप में
परिवतन होने म निहित है ।
राजनतिक दन) को ासनप्रतिया से वियुक्त कर मात्र प्रतिदृद्दी सगठनो के रुप
में देखने के कारण इस बात की उपेक्षा कर दी जाती है कि सरकारी व्यवस्था में
भी उनका योग रहता है। सत्ताधारी दल केवल वोट जुटाने और चुनाव लडने का
ही काम नही करते वरन योजना के कार्येक्मा और अय सरवारी गतिविधिया मे
योग देकर जनता में प्रवेश करने का यत्न करते है और जनता को राजनैतिक
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