जैनबालबोधक - भाग 2 | Jainbalbodhak Volume -2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसश भाग 1 १९ जो पुस्तक मली और फरी हई थी, वह अपनेलिये रकखी । रह देख ग्रभ्यापफनीने कहा कि प्योॉरनोन तूने হার पुस्तक বাঁ ফী, ক নী सयसे प्रथम रहता है। प्यरेनानने कहा कि- दूसरेको खराप पुस्तक देकर श्रपने आप भन्छी रखना यह अन्याय कहा भाया क्यों कि दूसरेको ऐसी खराब पुस्तक देनेमे उसके मनमें दु व होगा इस कारण खराय पुस्तक * पने भप নাভী তির सममकर मे ने यह पुस्तक अपने लिये रकखी है। অন্ত বান सुनकर अ यापक महाशय बडे प्रसन्‍न हुये। सये लडककि सामने अभ्यापफ्जीने प्यारेनालके इस उदारभायकी हूत मसा करके सयो प्यरिनानकी तरह उदारता गुण वारण फरनेको भेरणा की। जय यह प्रात प्यरेलालकरे यर्‌ थाहुनेने सनी ती उसने खुश होकर प्यरेनानकी बहुतसी मशसा करके प्यरिनानको पाच पुस्तक इनामम दी । छठा पाठ । जिनवाणी माताकी स्तुति सरेया मत्तगयद । जीरहिमायलत निऊरी, गुरु गोतमके मु बफु ड दरो ६1 मोहमहाचल भेद चली, जगकी जगतातप द्र करो ह ॥ क्ञानपयोनिधिमाहि र्नो, उह मग तर गनिसों उरी है। ना शुचि श्वाररगगनदोपरति, मे अजुनि करि शीस धरी 8 ॥१॥ याजग मन्दिरमे श्रनिवार, भन्नान भन्धेर उयो श्रति भारी। श्रीजिनक्तो घुनि दीप चिलम, जो नहिं होत प्रकाशनद्यरी ॥ तो किस भाति पदारथपातिः कशं सहते ! रहते श्रविचारी 1




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