अजूबा भारत | Ajuubaa Bhaarat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूतो का मेला ग दुनियां मे मुझे नमकहराम कहा पर मै नमक को कभी नहीं भूला । बड़े-बड़े राजा हमारे पीछे थरथराते थे । कोई नहीं जानता कि दुश्मन के घर रह हमने खाया पीया मगर काम अपना किया ।' यह जय चिन्ौड है | यहां बड़ी -बडी सतिया हुई है । यह एक ऐसी धरती है जिसे जब-जब भी प्यास लगी, इसने पानी के बजाय खून लिया है । इस मेले में सभी तरह के लोग आयेंगे । अच्छे भी होंगे और बुरे भी । जो कुछ देखें मन में रखें ।' मैने विनीत भाव से उनकी यह बात सुनी और 'हुकम-हुकम' कहा । अपनी इस बात के ठौरान उन्होने बार-बार दुनिया के बेटे' और 'जय विश्वम्भर' शब्द का उच्चारण किया | यह सब कहकर, हमे सावचेत कर, भलावण देकर मानसिह जी चले गये पर रात को जब-जब भी मेरी नीद खुली, मैंने पाया कि मानसिहजी उस पूरी रात सारी व्यवस्था ही करते रहे । कभी मैने सुना वे निर्भयसिहजी को बुलाकर आवश्यक निर्देश दे रहे है तो कभी सिणगारी -वाई से बातचीत कर रहे है कि सारी व्यवस्था देख लेना | यह कर लेमा, बह कर लेना । वे कइयों के नाम लेते जा रहे है और फटाफट निर्देश देते जा रहे हैं । दीवाली के दिन, दिनभर मैने शिवमन्दिर और उसके अहाते में बने महल में मीरा बाई का निवास देखा । महल के सामने मीरां की दोनों दासियों के खड़हर-चबूतरे देखे । पास में बना भोजगज का महल देखा । गोमुख देखा और जौहर कुंड देखा । उधर 'लाखोटिया बारी का बह लम्बा फैला परिक्षेत्र देखा । वह स्थान देखा जहा जयमलजी रात को दूटी हुई दीवाल ठीक करा रहे थे कि धोखे से अकबर ने अपनी “संग्राम' नामक चन्दूक का उन्हे निशाना बनाया । उनकी टाग में गोली लगी । वे जिस चट्टान पर जाकर सोये वहा अभी भी खून गिरा हुआ है । मेरे साथ सरजुदासजी कम, कछ्लाजी अधिक रहे । जब-जब भी उन्हे किसी स्थान के सम्बन्ध मे किस्से, बीती घटना, इतिहास और उससे जुडे प्रसग बताने होते वे सरजुदासजी में साक्षात हो आते और एक-एक कण-कण का विस्तृत हाल बता जाते, रोमांचित कर जाते | उनके जाने के बाद मुझे वे सारी चीर्जे सरज़ुदासजी को बतानी पड़ती कारण कि तब सरजुदासजी नहीं होते कल्लाजी होते । मीरां के सम्बन्ध मे तो कई चौकानेवाली बातें बतायी । उसका तो सारा इतिहास ही अलग है । वह फिर कभी कहा जायेगा । शाम को 7 बजे करीब मैं और सरजुदासजी मेले के लिए अन्नपूर्णामाता के मन्दिर से चले, साथ में मिठाई, नमकीन, धार (शराब), गूगल, अतर, अगरबत्ती, अमल, ककू, केसर, चावल, रोली, पानी, हुक, गुड मिश्रित गेहूं की घूघरी, (बाकला) आदि लिया ताकि मेले मे आये सुगरे नुगरे देवता ओ को राजी कर सर्के । मंदिर के अपने कमरे से बाहर आकर सर्वप्रथम हमने सबकों यूता न्यौता दिया. कहा. जितनें भी देठी देवता




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