रामायण में जीवनदृष्टि | Ramayan Me Jeevandrasti
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मुनिश्री भद्रगुप्तविजयजी - Munishree Bhadrguptvijayji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रामायण में जीवन”प्टि ७
वे मेर ससारी अवस्था वे समय से परिचित थे ।
इसलिए मैंने पूछा “क्या भाई आप धम की आराधना करते
हो या नही ?”
उन्हाने उत्तर दिया महाराज, आपके पास तो बस वम
के अतिरिक्त अन्य यात ही नही ।॥'
मने कहा-“भार्द, जो आदमी निस वस्तु की दरवान
लगाकर वठा हो, वह् उस दूकान मे सम्रहिति माल के अतिरिक्त
दूरं कौ वात क्यो करेगा ?
नही नहौ महाराज, इम भारत में मेरा जम हाना
गलत हो गया | अपना भी बोई जीवन है ? बितने बधन हैं?
जम के पश्चात् माता पिता का बधन तदुपरान्त শিহাব লা
वधन, पत्नी परिवार वार्यो कावधन यस
वधन, ही वघनं ।'
मने कहा “भाई तुमने जिस जीवन वी रट लगा रखी है,
বলা जीवन तो पश्चिम मे कुत्त भोगते ह बसा तो मनुप्य भी
नटी भोग सवत । रानी एलिजावेथ या वृत्ता रानी के महल में
खेल कुद सवता है और रानी वी गाद में नी मानव
हावर यदि पटुआ ये समान स्वछन्त्ता चाहिय तो निशियित
रूप स भारत मे जम हाने वी भूल हुई हैं। और জমা বর?
घम के विधि निपेधो से उसका घृणा थी, परन्तु घम व
লিনা বসা হিলীবা भी चल सकता हं ? हा धम ये विभिन
अग हात हैं। उिसी वा कोई अग प्रिय होता है, कः यौ का
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