पंचस्तोत्रसंग्रह | Panchstotra Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ससतागरस्तोष । [रे
पादपीठ-पेर रखनेकी चौकी जिनकी ऐसे हे जिनेन्द्र ! (विगतत्रप)
लज्ञा-रहित (अहम) में (बुद्धया विना अपि ) वुद्धिके बिना भी
( स्तोतुम ) स्तुति करनेके लिये ( समुद्यतमति “भवामि' ) तत्पर होरहा
हूं ( बाठम् ) बालक-मूखको ( विह्ाय ) छोड़कर ( अन्य: ) दूसरा
(कः जनः ) कौन मनुष्य ( जलसंस्थितमू ) जकमें प्रतिबिम्बित
( इन्दुबिम्बम् ) चन्द्रमण्डलको ( सहसा ) विना विचारे ( ग्रदीतुम्)
पकड़नेकी ( इच्छति ) इच्छा करता है ? अर्थात् कोई भी नहीं ।
भावाथ-हे जिनेन्द्र ! जिसतरह ठज्ञा रहित बाठक जलमें
प्रतिबिसम्बित चन्द्रमाको पकड़ना चाहता है, उसीतरह लजारहित
में बुद्धिकि बिना भी आपकी स्तुति करना चाहता हूं ॥ ३ ॥
वक््तुं गुणान् गुणसमुद्र ! शशाडकान्ता-
न्कस्ते समः सुरगुरुप्रतिमो5पि बुद्धया।
कल्पान्तकालपवनोद्धतनक्रचक॑ं
को वा तरीतुमलमम्बुनिर्घि भुजाभ्याम ॥४॥
अन्वयाथ-(गुणसमुद्र ! ) हे गुणोंके समुद्र ! (बुद्धघा) बुद्धिके
द्वारा ( सुरगुरुप्रतिमः अपि ) ब्रहस्पतिके सहझा भी ( कः ) कौन
पुरुष ( ते ) आपके ( दाशाकुकान्तान् ) चन्द्रमाके समान सुन्दर
( गुणान ) गुणोंको ( वक्तुम् ) कहनेके लिये ( क्षम: ) समय हैं ?
अर्थात् कोई नहीं (वा ) अथवा (कत्पान्तकाठपबनोद्धतनक्रचक्रम् )
प्रलयकाछकी वायुके द्वारा प्रचण्ड है मगरमच्छोंका समूदद जिसमें
ऐस ( अम्बुनिधिम् ) समुद्रको ( मुजाभ्याम् ) भुजाओंके द्वारा (तरीतुम् )
तैरनेके लिये ( कः अढमू ) कौन समय है ? अर्थात् कोई नहीं ।
भावाध-हे नाथ ! जिसतरदद॒ तीक्ष्ण वायुसे
खहदराते और हिंसक जठजन्तुओंसे भरेहुए समुद्रको कोई भुजाओंसे
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