एकलव्य | Eaklavya

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Eaklavya by डॉ रामकुमार वर्मा - Dr. Ramkumar Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाण दो, हे नीलकंठ ! हे किरात कामु कार्मकी | गूज उठे व्योम, वन, आन्त, गिरि-कन्द्रा | शब्द-वैध की अलक्ष्य लक्ष-लक्ष ध्वनि मे, नृत्य करे काव्य ओर काव्य मं वसुन्धरा || पूर्व काल की कथा का कठिन कोदंड है, उसमें प्रत्यंचा चे मेरे महागीत की। मेरे प्रमु! वीर एकलव्य तीच तीर है, जो विष्य वेधता है शक्ति ले त्र्ताल् की | हे फिरातराज । मे किरात-गीत गां जी , ४ जटाटवी गलज्जल-प्रवाह ” के यान हों । ८ अहउण ! “हल? जैसे डमन्निनाद-सूत्र काव्य - पुष्य लेके मेरे एकलव्य-गान हा ॥




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