शाहजहाँ | Shahjahan

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द्विजेन्द्रलाल राय - Dvijendralal Ray

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पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 - नाटकके सौन्दयेमे कोई कति-वृद्धि नहीं हुई । शुजा साहसी ओर युद्धपरेमी था ओर युद्धक्ते् ङी विभीषिकाके भीतर भी बह नृतल्यगीतमें मस्त रहता था। यह बात इतिष्टाससे मिलती है। ऐतिहासिकोंका मत है कि वह घोर विछासी ओर अततिशय व्यसनासक्त था; परन्तु नाट यकारने उसे पत्नीगतग्राण, सरलचित्त, उन्नतमना और भावुकके रूपमें चित्रित किया है। महम्मद पहले पिताका आज्ञानुवर्ती था; पीछे वशपरम्पराकी प्रथाके अनुसार वह भी विद्रोही हो गया था। शाहजहाँने जब उसे बादशाह बना देनेका लोभ दिखलछाया, तब उसने साफ शब्दों- में कह दिया कि मुझे राज्य नहीं चाहिए । यह एतिहासिक घटना है । किन्तु उसके इस खा्थंलागका कारण पिताकी भक्ति थी अथवा पिताके क्रोधकी भीति, इसे कोई नहीं जानता । उसमें यह सममनेकी शक्ति अवश्य ही थी कि जराजजर और मतिश्नान्त शाहजहाँ ओरंगजेबकी बिजयिनी तलवारसे उसकी रक्षा करनेमें सवंथा असमथं है । क्योंकि वह औरंगजेबका पुत्र था ! नाट-थका- रने महम्मदचरित्रके इस स्वार्थवागका और पीछे पिताके. परित्याग कर देनेका जो सुन्दर चित्र अंकित किया है, उससे महम्मदके चरित्रका उत्कष तो हुआ ही है, साथ ही नाटकके साधारण सौन्द- ' येंकी भी बहुत वृद्धि हुईं है । सुलेमान बीर और सुबुद्धि था।. मेनुसीने लिखा है कि शाहजहाँ, दाराकी अपेक्षा सुलेमानकी बुद्धि और शक्ति पर अधिक श्रद्धा रखता था | उसके चरित्रको आदश चरित्रमें परिणत करके न्ाटथयकारने इतिहासकी अमयोदा नहीं की है । शाहजहाँ नाटकके स्त्रीपात्र उच्च श्रेणीके हैं। नादिराकी कोस- छता, सहिष्णुता और पतिभक्ति हिन्दूकुछलक्ष्मियोंके लिए भी आदशे-




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