हिंदी वक्रोक्तिजीवित | Hindi Vacroktijeevit
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.29 MB
कुल पष्ठ :
863
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका | पु्व वृत्त
है और कदाचित् रुय्यक की भाँति श्रर्थालंकार माना. है । परन्तु यह वात नहीं है--
[पुतीय उद्योत में उसके सामान्य रूप की भी स्पष्ट स्वीकृति है जहां उन्होंने भामह
की चक्रोक्तिविपयक इस प्रसिद्ध स्थापना की पुष्टि की है :--
सेपा सर्वत्र वक्रोक्तिरनया््यों विभाव्यते ।
यत्नोधस्यां कविना कार्य: बिना ॥।
श्रौर वक्रोक्ति की पर्यायता स्वीकार करते हुए श्रानन्दवर्वन ने लिखा है:
ना नर सबसे पहले तो सभी श्रलंकार अतिशयोक्ति-गर्भ हो सकते हैं। महाकवियों
परा विरचित वह (अन्य अलंकारों की अतिदायोक्तिगर्मता) काव्य को श्रनिर्दरू-मेय
प्रदान करती है । श्रपने विषय के अनुसार किया हुआ मत्तिदायोक्ति का. सम्व्न्ध
योग) काव्य में उत्कर्ष क्यों नहीं लाएगा । भामह ने भी अतिदयोक्ति के लक्षण में
ह कहा है:--(जो अमतिशवोक्ति पहले कह चुके हैं, सब अलंकारों की चमः
कार-जननी) यह सब वही वक्रोक्ति है । इसके द्वारा परदार्थ चमक उठता है। कवियों
गे इसमें विद्योप प्रयत्त करना चाहिए । इसके थिना अलंकार ही क्या है ?
उसमें कवि की प्रतिभावद अतिवायोक्ति जिस अलंकार को प्रभावित करती, है;
सको (ही) दोभातिशय प्राप्त होता है । श्रन्य तो (चमत्कारातिदाय-रहित) श्रलंकार
1 रह जाते हूं । इसी से सभी अलंकारों का रूप धारण कर सकनें को क्षमता के
गरण. श्रमेदोपचार से वही सर्वालंकाररूप है, यही अर्थ समझना चाहिए ।”--(हिन्दी
बन्यालोक पृ० ३६-९५)
उपर्युक्त विवेचन का निष्कर्ष यह है कि आनन्दवर्वन के मत से
(१) चक़ोक्ति श्रतिशयोक्ति की पर्याय एवं सर्वालंकाररूपा है,
(२) उसका चमत्कार कवि-प्रतिभाजन्य है,
(३) विपय का मौचित्य उत्तका नियामक है अर्थात् चक्रता श्रयवा अतिदाय का
'प्रोग विपय के अनु हूल ही होना चाहिए । गा मर
इस तीसरे दाथ्य के द्वारा आनन्दवर्धन ने वढ्रोक्ति को श्रपने सिद्धान्त के अन-
सन में ले लिया है ।
प्रत्यक्ष रुप में श्रानन्दवर्वन के ग्रन्य में वक़ो क्ति की इतनी ही चर्चा हूं; आर
' हु भी अत्तिशयोक्ति के द्वारा । किन्तु अप्रत्यक्ष रुप में उनके ध्वनि-निरुपण का कुक
वक्रोक्ति-विवेचन पर गहरा श्रौर व्यापक प्रभाव है । चक़क्ति-जीवितम की रूपरेखा .
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