बात - बात में बात | Bat Bat Me Bat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ ' | [ बात-बात में बात छींटा ही परतित्रताओं और सतियों के बदन में छाले डाल देता है । परन्तु पतित्रत धर्म के अचार की आवश्यकता अब भी शेष है। कहिए प्रचार है या नहीं ९ “इसे आप प्रचार कहते है ? यह प्रचार नही, यह्‌ जीवन का सत्य और आदश है?” -सर्वोदयो जी बोले --“श्रचार में स्वार्थ और हिंसा की भावना होती हैं। यह मनुष्य के अन्तःकरण में भगवान ९ `. है । द्वारा शाश्वत धम की प्र रणा है ।” “जी ?”-कामरेड ने सिर हिलाकर पूछा-“तपस्या करने ब्राले शुर का सिर काट लेना भगवान की प्रेरणा है, अछूतों का मन्दिरि-प्रवेश कराना भी भगवान को प्रेरणा है ? पति के भूठे सन्देह में श्ली को आग में जला देना इंश्वरीय प्रे रणा है और ख्री को माता ओर देवी कह कर फुसलाना और पति की दासता के गव का उपदेश देना भी ईश्वरीय प्ररणा है ?” “यह तो आप के मन सें हिंसा ओर ह्वंष की प्रवृत्ति बोल रही दरः करुणा का भाव चेहरे पर लाकर सर्वोदयी जी ने समाया । परन्तु इस से संतुष्ट न होकर राष्टीय ऊवे स्वर में बोले--“यह तो काल धमं हे । धे देश, काल च्मौर पात्र के अनुसार होता है ।” “साहित्य भी देश, काल और पात्र के अनुसार होता है ? कामरेड ने फुलमड़ी छोड़ दी । “यदि অজ देश, काल के अनुसार होता है तो बह शाश्वत नहीं हो सकता-माक्सवादी ने अपना “त्रूप” का पत्ता फ का । उनके तक का उत्तर देने के लिए सर्वोदयी फिर बोले--“देश और काल के परिबतनों के बावजूद धम और सत्य का मूल सत्य और अहिंसा! भगवान की अरुणा होने के कारण शाश्वत ही है ।” अच्छा सुन्िय --अ्गतिवादी आगे बढ़े--“यदि सत्य का मूल शाश्वत है तो 'सत्य हरिश्चन्द्र” ने जिस सत्य का आदश आप के सामने रखा है, क्या उसका पालन आज सी कीजियेगा ? राजा हरिश्चन्द्र 'सत्य का सबसे बड़ा आदश इस लिए है कि उन्होंने ब्राह्मण को दान देने की




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