राजनीति - विज्ञान | Rajniti Vigyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
72 MB
कुल पष्ठ :
428
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पन्नालाल श्रीवास्तव - Pannalal Srivastav
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)হর राजनीति विज्ञान
झौर राजनीतिशास्त्र इत्यादि विषयों को थी एफ विज्ञान मानते दे । फिश मारे
यहाँ प्रत्येक शास्त्र में धर्म और प्रथाओं तथा पारलोकिकता इत्यादि का सम्मिश्रण
रहता है । पश्चिम में जब किसी विधय का अध्ययन किया जाता हैं, तो उस
शुद्ध तक॑, इतिहास प्रयोग और बारतबिकता के आधार पर किया সানা ८६ ।
ग्रीस देश के विद्वानों ने यह तरीका प्रारभ्भ किया ओर बाद নম গহিন से दस
स्वीकार कर लिया ।
लेकिन मुश्किल यह हैं कि बहुत से पश्चिमी विद्वान भी राजनीति को विजान
के रूप में स्वीकार करने के लिये वेयार नहीं हैं। उनका गत है कि भातिक-
शास्त्र था रसायनशास्त्र की सरह इसकी कोए प्रयोग-
क्या राजनीति एक | र
तं शाला सहीं होती। एन विज्ञा्नोीं को प्रभोयधानोश्र
विज्ञान है ? हि ূ
में बहत से प्रयोग किये जाते # সাক उनके आधार पर
इनके सिद्धान्त बनायें जाते 81 हंस प्रकार के प्रयोग राजनीति में सम्भव
नहीं है। राज्य की चालक হাপিল मनुष्य জানা है। मनप्य के कार्य तथा
कार्य-कारण इतने লিজার লীলা ভিক্ষা তলা আমান नियमों के दासारे में सीमित
करना सम्भव नहीं है। प्रसिद्ध फ्रेंच विद्वान श्रॉगस्ट নামত ने तीन নন के
श्राधार पर राजनीति को विज्ञान मानने से इनकार कर दिया। 'उराका मत
था कि एक तो' राजनीति के विज्ञारक श्रपने शिद्धान्तों की प्रणालियों प्रौर
निष्कर्षों के सम्बन्ध में एकमंत नहीं है। दूसरे राजनीति के विकास में
कोई शरंखला नहीं पाई जाती। तीरारे इसमें एसी सामग्री नहीं पाई जाती
जिसके भ्राधार् पर नियम' बसाये जा सकें। यह कहना एक हद तक ठीक
है। पर हमें यह भी सोचना चाहिये कि राज्य की क्रियाशीलता इसनी'
व्यापक, इतनी बहुमुखी श्रीर इतनी गूथी हुई होती है कि उसे भौतिव
विज्ञानों की नपी-तुली कसौटी पर नहीं कसा जा सकता । भौतिक विज्ञानों की
सुनिश्चितता की हमें इसमें श्राशा नहीं करनी चाहिये। भीतिकशास्त्र,
रसायनशास्त्र, भूगभंशास्त्र इत्यादि ऐसे विज्ञान है, जो जश पदार्थौ पर
प्रयोग करते हैं। इन जड़ पदार्थों का अ्रपना कोई स्वतन्त्र श्रस्तित्व हीं
होता। थे जड़ पदार्थ सब जगह और सब समय एक से होते है । लेकिन;
मनुष्य प्रकृति में हमेशा ग्रन्तर होता है। सब मनुष्य एक से नहीं होते।
परिस्थितियाँ उनके कार्यों पर अपना प्रभाव डालती हें। इसलिये राजनीति
में हम ऐसा सिद्धान्त निर्धारित नहीं कर सकते, जो सब समय शरीर सब
परिस्थितियों में लागू हो ।
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