संस्कृति संगम | Sanskriti Sangam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : संस्कृति संगम  - Sanskriti Sangam

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about क्षितिमोहन सेन शास्त्री - Kshitimohan Sen Shastri

Add Infomation AboutKshitimohan Sen Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
संस्कृति संगम ` ल्ादीं बल्कि भीतर से लेकर उन्हें शाख-पूत बनाया । यही कारण हे वि सारे देश ने उन्हें आन्तरिकता, के साथ स्वीकार किया । | दशाचार श्रौर शिष्टाचार के साथ इन निब॑धकारो का केसा संब॑र रहा है, यह दिखाने के लिए नीचे कुछ मनोरंजक विवरण दिए ज' रह हैं । | मदनपारिजात नामक निबंध-प्रंथ चोदहवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में लिखा गया था । इसके लेखक विश्वेश्वर भट्ट पेद्िभद् के घुत्र थे ओर च्यासारस्य मुनि के शिष्य थे । इनका गोत्र कौशिक था। दिल्ली के उत्तर में यमुना नदी के किनारे काष्ठापुरी में टाका-वंशीय राजा मदनपाल के. आश्रय में यह ग्रंथ लिखा गया था ! ग्रन्थकार ने अत्यन्त सावधानी से यह ग्रंथ लिखा था । बड़े यत्नपूवक इसमें मिताक्षरा का अनुसरण किया गया है ओर एक भी दक्षिणी आचार नहीं आने दिया गया है। देशाचार और स्थानीय शिष्टाचार के प्रति इतनी सावधानी दिखाई गईं है कि रथकार के स्वदेशीय आचार इसमें एकदम नही भिलते । समूचे उत्तर ` भारत में यह ग्रंथ आदत होता है । .._ दसरी तरफ़, बहत से दक्तिणदेशीय ब्राह्मण काशी में बस गए थे । 'शिव-पूजां-विषयक लिंग-प्रतिष्ठा-विधि के रचयिता नारायण भट्ट के पिता रामेश्वर भद्द का वंश दक्षिण से आकर काशी में बस गया था | दासमोदर के पुत्र गोरीश भट्ट का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था। इन्होंने काशी में ही अध्ययन किया था। सन्‌ १६०६ ई० में अकबर के दरबार में ये सम्मानित हुए थे। अनन्त-पुत्र राम देवज्ञ ने १६००-१६०१ ई० 'मुहत्तःचिंतामणि की और नीलकंठ ने व्यवहार-मयूख की रचना की थी । इनका पुराना निवास विदभं या बरार मं था {महाराष्ट के चित्पावन्वंशीय गोपाल के पुत्र विश्वनाथ ने काशी में ही सत्‌ १७३६ ई० में ब्रत-प्रकाश नामक मंथ लिखा । रल्माला के रचयिता कृष्णभद्ट आड़े भी काशीवासी थे । यद्यपि ये लोग काशी में बहुत दिनों से बस गए थे, तथापि इनके अंथों में दक्षिणी प्रभाव खोजा जा सकता है । শপথ ष्ठ স্পা




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now