श्री मंगलपाठ विधान | Shree Mangalpath Vidhan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
248
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सिद्धसेन जैन गोयलीय - Siddhsen Jain Goyliya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[११ ] রর
श्री जिनवरजी सुखकार, हरषत चित्त स्जों,
অন্ত चतुक०, हस० ॥ अघे ॥ ९॥
कत्रित-
वृषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमति सुपद्म सुपारस चन्द् ।
पुष्पदन््त शीतल श्रेयांसवर, वासुपृल्य जिन विमछ अमनन््द् ॥
श्री अनन्त অন শ্রী शान्ति श्रश्ु, कुंधु अरह मछि ভুসবণ জিলচ্ছু।
नसि नेमीश्वर पाश्च वीर जिन, मन वच तन पूजत शत २ इन्द् ॥॥
घतेन? ठक्चण काठ नित्य दै, समयादिक घटि प्रहर सुजान ।
अद्दोरात्रि पुनि पक्ष मद्दीनों, ऋतु* घद मास अयन° रखान ॥
शत, सदख, ट्ख, कोडि, संख्य, पङ, सागर परे गिनत संख्यान ।
कोडाक्रोडो बिंशति सागर, कल्प काऊ“ मयोद बखान ॥ २ ॥
बीते काठ कल्प बहु संखित, हुंडा' कल्पकाछ जब होइ ।
रीति अनीति* बहुत प्रगटे जब, ऐसो कथन कियो मुनि सोइ ॥
भरतखंड म अवसप्पणि१ + षट् काडनिफी ° रचना सुहमोह ।
पहले दूजे तीजेमें छखि भोगभूमि चचथे१* करमोर ॥ ३॥
१ मुनिषुत्रत. २ सो इन्द्र->मवनवासियोके ४०, व्यन्तरोके ३२, कल्पवासियों
के २४५ ज्योतिषी देवोंके २, मनुष्योंका ९ ( चक्रवर्ती), पशुओका ९ (सिह,
३ वत्तन -पल्टना-फेरफार, ४ घड़ी, ५ दिनरात, ६ दोमास, ७ छहुमास,
८ बीस कोड़ाकोडो सागर का एक कल्प काल हॉता हैं। ९-४६ व ल््प-
काल ( उत्सपिणी-अवसपिंगी ) बीत जाने पर हुँडाकाल आता है | १० हुंडा-
काल मे अनेक विपरीत बातें हो जातो हैं--जेसे, तीथंकरके पुत्री होना, चक्रवर्ती
की हार, च्रशठ शलाका पुरुषोकी संख्यामें कमी, आदि । ११ जिसमें मायु,
सुल, ऊंचाई भादि घटते जावे । १२ सुखमा सुखमा, सुलमा, सुखमा दुखमा,
दुलमा-सुला दुखमा, दुलमा दुलमा । १३ चुथेकाल मे कर्मभूमि ।
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