श्री मंगलपाठ विधान | Shree Mangalpath Vidhan

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Shree Mangalpath Vidhan  by सिद्धसेन जैन गोयलीय - Siddhsen Jain Goyliya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[११ ] রর श्री जिनवरजी सुखकार, हरषत चित्त स्जों, অন্ত चतुक०, हस० ॥ अघे ॥ ९॥ कत्रित- वृषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमति सुपद्म सुपारस चन्द्‌ । पुष्पदन्‍्त शीतल श्रेयांसवर, वासुपृल्य जिन विमछ अमनन्‍्द्‌ ॥ श्री अनन्त অন শ্রী शान्ति श्रश्ु, कुंधु अरह मछि ভুসবণ জিলচ্ছু। नसि नेमीश्वर पाश्च वीर जिन, मन वच तन पूजत शत २ इन्द्‌ ॥॥ घतेन? ठक्चण काठ नित्य दै, समयादिक घटि प्रहर सुजान । अद्दोरात्रि पुनि पक्ष मद्दीनों, ऋतु* घद मास अयन° रखान ॥ शत, सदख, ट्ख, कोडि, संख्य, पङ, सागर परे गिनत संख्यान । कोडाक्रोडो बिंशति सागर, कल्प काऊ“ मयोद बखान ॥ २ ॥ बीते काठ कल्प बहु संखित, हुंडा' कल्पकाछ जब होइ । रीति अनीति* बहुत प्रगटे जब, ऐसो कथन कियो मुनि सोइ ॥ भरतखंड म अवसप्पणि१ + षट्‌ काडनिफी ° रचना सुहमोह । पहले दूजे तीजेमें छखि भोगभूमि चचथे१* करमोर ॥ ३॥ १ मुनिषुत्रत. २ सो इन्द्र->मवनवासियोके ४०, व्यन्तरोके ३२, कल्पवासियों के २४५ ज्योतिषी देवोंके २, मनुष्योंका ९ ( चक्रवर्ती), पशुओका ९ (सिह, ३ वत्तन -पल्टना-फेरफार, ४ घड़ी, ५ दिनरात, ६ दोमास, ७ छहुमास, ८ बीस कोड़ाकोडो सागर का एक कल्प काल हॉता हैं। ९-४६ व ल्‍्प- काल ( उत्सपिणी-अवसपिंगी ) बीत जाने पर हुँडाकाल आता है | १० हुंडा- काल मे अनेक विपरीत बातें हो जातो हैं--जेसे, तीथंकरके पुत्री होना, चक्रवर्ती की हार, च्रशठ शलाका पुरुषोकी संख्यामें कमी, आदि । ११ जिसमें मायु, सुल, ऊंचाई भादि घटते जावे । १२ सुखमा सुखमा, सुलमा, सुखमा दुखमा, दुलमा-सुला दुखमा, दुलमा दुलमा । १३ चुथेकाल मे कर्मभूमि ।




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