आयुर्वेदीय हितोपदेश | Ayorvediya Hitopdesh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आयुर्वेदीय-हितो पदेशः ५
रहता हं । एं शरीर प्रवाह से नित्य या श्रमृत हं । सो यही देवो कौ
भ्रमरावती पुरीहं। यही स्वर्ग है। सब को श्रप्रमत्त होकर इसको रक्षा
और वृद्धि करनी चाहिए? ।
१--आवश्यक होने से इन मनो म आए कुछ पदों को व्याख्या की जाती है ।
प्राण शब्द का व्यापक अर्थ--
अप्नि: सोमो वायु: सत्तव॑ रजत्तमः पव्-चेन्द्रियाणि भूवात्मेति प्राणा: ॥
ख. शा. ४।३
--अ्नि, सोम ( चन्द्रमा ) यौर वादु ये तीन देव ; सत्व, रज, तम ये तीन
गुण, पाच ज्ञानेन्द्रिय तथा आत्मा ये बारह प्राण कदाते रहँ! अभि शरीर में पाँच
पित्त, धालभिर्यो तथा उनकी उष्णता के कारण कूप में एवं वाणी की अधिष्ठात्री
देवता के खूप मेँ रहता है । सोम पश्चविध कफ, रस, शक्रादि जलभूत-पधान द्रव्यो
ओौर रसनेन्दिय के उपादान-ह्प में तथा मन की अधिष्ठात्री देवता के रूप में रता
है। वायु आणादि पाँच वायुओं के रूप में रहता है। पाँच सूक्ष्म ज्ञानेन्द्रियाँ
लिन्न-शरीर ( सूषक्ष्म शरीर ) के साथ इस शरीर में अपने-अपने स्थूल अधिष्ठान मेँ
प्रवेश करती हैं । आत्मा का भी प्रवेश सूक्ष्म शरोर के साथ पूर्व कमो की प्रेरणा से
होता है । यह विषय 'आयुर्वेदीय पदार्थविज्ञान में विस्तार से देखना चाहिए 1
आधुनिकों के नाडी-सस्थान के विभिन्न केन्द्रों को प्राचीनों ने चक्र नाम दिया न
.है यथा मस्तिष्क के छिए सहल्ार, शतदरू पश्न॒ आदि नाम दिये हैं
आठ चक्र शरीर _में हैं। भत यह भष्टाचका है। द्वो कर्ण, दो चक्छ, दो _ |
लासिक्रा,एक मुख, एक शद, एक शिश्ष ये मिलकर जब द्वार कहत हैँ । नासिका
नन्य मत से भठे एक द्वार हौ, परन्तु भराचीन खरोद्य-शाल्न के मत से एक समय
एक ही ओर के छिद्र से वायु जाता और दूसरे से निकलता है। यह खय भी
प्रच्कक्ष किया जा सकता है'। श्वास के छिद्र-भेद् से प्रवेश के अनुसार शरीर में
शीत या उष्ण गुण की वृद्धि होती है । इनसे अमीष्ट काये में छुमाशुम के ज्ञान का
विचार मो योगियों ने किया है । प्राचीन क्रियाशारीर में यह विषय তান
योग्य है ।
यजुर्वेद अध्याय ३४ मे मन को ऽयो तिषां उ्यो तिः तथा “यञ्ज्योतिरन्तरमूतं
प्रजासु कदा है । अत तृतीय मन्त्र के ज्योतिः का अथै मैने सन किया है 1
इसी अध्याय में '्यद्पूर्व यक्षमन्तः प्रजानाम् इन पदों मे उते चक्ष भी कहा हे ।
इस वेद के साक्ष्य के आवार पर ऊपर चतुर्थ मन्त्र का अर्थ करते हुए आचीना-
लुमोदित अथै “ब्रह्म देकर खामिमत अथ 'मन' भो दे दिया है। पूजा अथ की
यज धातु से यक्ष शब्द् वना है । इस धातु का सगतिकरण अथे भी है। मन--
22 দে শে শাশাগশীশীশশ্শীশীশশী টা শাহ
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