वैदिक देवशास्त्र | Vaidik Devsastra

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Vaidik Devsastra by डॉ. सूर्यकान्त - Dr. Suryakant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका 5 इस भद्र ब्वर के श्राविष्कार के पीछे वह परंपरीण देवकथा काम कर रही थी जिसका स्वर्ग के साथ संबन्ध भ्रटटट रहता श्राया है । भद्र बर्बर के पुजारी योरपियनों ने अ्रपने महाद्वीप से दूर-दूर जाकर नंव-नव ट्वीपों श्र महाद्वीपों को खोजा श्रौर वहां बसने वाले स्वच्छन्दचारी श्रादिवासियों से प्रेम बढ़ाया क्योंकि योरपीय नर-नारियों की दृष्टि में इन भद्र वर्वरों को समय की बाधा नहीं सताती थी आर इनके खेतों में बीज बिखरते ही धनधान्य से भोली भर देते थे। सच पुछिए तो योरपीय गवेषकों ने भद्र बबेरों के देखों को स्वर्गे के नाम से पुकारा है श्रौर वहां रहनेवाले मांसादियों के गुणगान में सहस्रों ग्रन्थ लिख डाने हैं । किलु ध्यान देने पर ज्ञात होगा कि इन भद्र वर्बेरों की अपनी कथा-कहानियों में भी विगत समय की स्मृतियां काम कर रही थीं उस समय की स्मृतियां जवकि जगती श्रपने दौशव में खड़ी श्रागे की ओर निहार रही थी । योरप के गवेपकों को इन बच्ेरों के जंगलों में स्वयं ईडन गाडन लहलहाता दीख पड़ा उनके देशों में उन्हें स्वयं स्त्रतस्त्रतादेवी खिलखिलाती दीख पड़ी श्र उनके समाज में उन्हें सामाजिक एवं राजनीतिक जगतु की वे सभी वदान्य भावनाएं चरिताथे होती दीख पड़ीं जिनके लिये ये गवेपक स्वयं अपने महाद्वीप में लालायित रहते भ्रा रहे थे । कितु योरप को छोड़ अब जरा इन भद्र वर्वरों की भ्रोर भ्राइये और निहारिये कि स्वयं उन्हें श्रपनी ग्रवस्था कैसी लगा करती थी । निश्चय ही जिस प्रकार योरप के निवासी श्रपने ापको स्वर्ग से बहुत दूर च्युत हुम्रा समभते थे उसी प्रकार उनके भद्र बबंर भी अपने आपको स्वगंखण्ड से दूर गिरा हुम्रा माना करते थे । क्योंकि इन भद्र बर्वरों की दृष्टि में भी अतीत काल ही सुनहला था ब्ौर इन लोगों में यह भावना जागरूक थी कि ये लोग श्रतीत के झादर्श स्वशिम खण्ड से गिरकर बहुत दूर धरती पर भरा पड़े हैं । वयोकि स्वगं-संबन्धी देवकथाएं जेसी योरप के देशों में प्रचलित थीं बैसी ही इन भ्रद्र बबंरों के देशों में भी श्राम थीं । निःसंदेह देश-देश की इन देवकथाश्रों में भेद था कितु कुछ बातें सब देवकथाश्रों में समान पाई जाती थीं। उदाहरण के लिये यह भावना सभी जगह काम कर रही थी कि स्वगं का आदमी अमर था श्रौर वह देवताओं को अपनी झ्रांखों से देखा करता था । वह प्रसन्न एवं संतुष्ट था श्र उसे भोज्य श्रादि की प्राप्ति के लिये हाथ नहीं हिलाना पड़ता था । दूसरे दाब्दों में कह सकते हैं कि इन भद्र बबरों के भी अ्रपने भद्र बवंर रहे थे जिनकी ये लोग अपने श्रापको दूर की संतति बताया करते थे । उनके ये भद्र बर्वर स्वगं में विचरते थे श्रौर सर्वात्मना स्वच्छन्द थे । हर प्रकार के श्रम से ये लोग बरी थे श्रौर किसी भी फल के लिये इन्हें झ्रंगुली नहीं हिलानी पड़ती थी । किसी कारण ये झ्रादि मानव स्वर्ग से खिसककर दूर जा पड़े और उनके इस पतन में ही मानव-जाति के पतन का श्रसली रहस्य छिपा हुआ है । दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि योरपीय गवेषकों के भद्र बबेरों की हष्टि में भी जीवन का आनन्द भ्रतीत में संनिहित था । योरपीय गवेषकों के भद्र बबेर ऑ्रादिम काल की स्मृति में पगे थे श्रौर तरह- तरह के उत्सव करके उसकी भांकियां लिया करते थे । कह सकते हैं कि उन्हें भ्रपने स्वगं की




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