तेरापन्थ - आचार्य चरितावलि खंड १ | Terapanth Acharya Charitavali Khand-1

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Terapanth Acharya Charitavali Khand-1 by श्रीचंद रामपुरिया - Srichand Rampuria

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ६ उसी दिन हीसरे पहर आप मुरि कपूरमी से वोछे--“शीघ्र जाओ गौर आचार्य थी को आज दी दसन करने के सिये कहो । यदि लाज न पषार सकें हो बरू पहर दिन बीतने के पूव दर्शन करें। देर न करें । बद्दीं उनके मन की मन ही में मे रह बाप 1” इसके बाद व्वास का प्रकोप बढ़ गया। चौथे पहर बुध पाता हुई मौर फिर शासन सम्बन्धी वात करने सगे। शाम के अछार का '्यांग कर दिया । सार्यकाल को भपने मुख से दाम्दोन्यार करते हुपे बैठे-बैठे प्रतिक्मण किया । रा में संठों से ब्यास्पान दिलवाया । रात्ि के मन्तिम प्रहर में मुनि सठीदासमी और उदयचन्दडी मे आपको 'घौबीसी की चोदहू बा सुनाई । बाद में आप फिर अनेक तरह की वैराग्य की बातें सन्तों से करने सो । जीतमर्जा स्वामी मे विधार किया : 'आयुका कया मरोसा ? शमी तो कोई पका महीं फिर मी 'मिन्छामि हुकई दिछा देना बच्छा है। ' ऐसा सोच उन्होंने ग्रत उच््चारित करनाये भौर 'मिच्छामि दुक्ई' दिलवाया । आपने बड़ प्रसन्न मन भौर बड़ी सावधानी के साथ वासोभना की । उस समम का चित्र इस प्रकार है 1 हम पिय निज मुख सूं कह हो, सेभे सब्द उभार। मिच्छामि पुर मांहरे दो एह्वा सादबाग यपुलवार ॥ धूम पांचू ही थेद में हो. भाप्पो हे पणिचार । मिच्छामि बुक ठेहगो हो कहा अूजूपा शब्द उचार ! मन बच कासा गुप्त में हो. लागो हुवे भठठिदार । लू जगा सेद करी कहा हो मिच्छामि पुकू्ड उदार! छठ श्रता रा प्रतिचार मसे हो हम थोले ऊंच स्वर बाल | एये काल रो मिच्चामि दुछ४ हो भायमिये कास रा पचास ॥ पाप भहारे भालोबिमा हो श्दा थुदा ले शाम । पत्रलाल पागमिमे काल मैं हो, जिडिव जिविये कर ताम ॥! इग रीत मददाप्रत भालोबिया हो, भ्ालोबण भषिकार । भाप्यषती हेस महामुनि हो. योप्य मिस्पों भौकार ॥ इसके बाद मुनि डीठमसूमी ने स्वानांग उतराम्ययन भादि सूत्रों के पाठ सुनाते हुये भाफके परिणामों को बैराग्य में ऐसा ठस्स्पेन किया वि आपकी भात्मा आनन्दविमोर हो उठी । मुनि डीतमरूजी मे “मृत्यु मदोर्सब है” इस बात को बड़े मार्मिक दंप से भपने बिद्या-गुरु के सम्मुस रखा मौर उसके बाद उनके गुभवाद किये । जब तक प्रतिक्मम का समय मा चुका था। आप सतीदासजी से बोसे--''निदा भा रही है।” सतीदासजी बोले--'सिटकर निद्दा छं ।”. आप बोले--“प्रतिक्मण करना है ।” --देम बदरसो « ३६ ३८ इस दे श्




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