मेरी आत्मकहानी | Meri Aatmkahani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
301
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ मेरी आत्मकहानी
प्रेम था। समय पड़ने पर सब लड़ाइ-मगढ़े शांत हो जाते थे। एक
समय की बात है कि बनारस के पंजाबी खत्रियों में से कुछ लोगों न
पंचायत करके लाला हगरजीमल पर अपगध लगाकर उन्हें जातिच्युत
करना चाहा | जब पंचायत हुई ता हमारे सब इष्ट-मित्र तथा संबंधी
एक हो गए । परिणाम यह हुआ कि जो ज्ञतिच्युत करना चाहते थं
उन्हें अपनी हो रक्षा करना कठिन हो गया। एसी ही एक घटना मेरे
साथ भी हुई। मेरे मित्र बाबू जुगुलकिशार के छोटे भाई बावू
सालिग्रामसिंह जापान गण भर । वहाँ स लौटने पर गजा मातीचंद के
यहाँ एक दावत में हम लोग एक साथ क. टवुल के चारां च्रार
बैठकर जलपान कर रहे थे। इतने में खत्रियों के एक प्रतिष्ठित
व्यक्ति ने आकर मुभसे पूछा कि 'कुछ लोगे ९” मेन कटा कि, ष्टः
बरफ की कुलफी दीजिए |! उन्होंने जाकर दे दी। दूसरे दिन पंचायत
करके उन्होंने कहा कि 'इन्होंने विलायतियों के संग खाया है. अतण.
ये जाति से निकाल जायें ।' में वुलाया गया। मुझसे पूछा गया कि
“क्या तुमन विलायतियों के संग बैठकर ग्वाना खाया है ।' मेन कहा
कि (कोन कहता है, वह मामन अवे ।' लाला गावधनदाम ने कहा,
हाँ, मेन स्वयं परासा है ।' इस पर मेने पूछा कि आपने क्या परोसा',
तो उन्होंने कहा कि बर्फ की कुलफी ।” इस पर मेन कहा कि पंजाब
में मुसलमान गुज्गें स दूध लेकर लोग पीते हैं और उन्हें कोइ
जाति-च्युत करने का स्वप्न भी नहीं देखता । इन्हीं पंजाबी खत्रियों में
यहाँ इसके विपरीत आचर्ण क्यों होता है ? क्या पंजाब में किसी
काम के करने पर हम निग्पराध रहते हैं और यहाँ वही काम करने
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