विजय भाग - 2 | Vijay Part - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
344
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विजय ३२१ ।
प्रकाश क्या बिल्कुल पशु हो गया है? मैं तो उसे ऐसा नहीं
जानती थी |”?
मायावती ने उत्तर दिया-- “मैं च्या जानू, वह क्या हो गए हैं
लेकिन इतना ज़रूर है कि पहले की तरह वह नहीं रहे ।””
रानी किशोरकेसरी ने पूछा---'“वह कौन উই, जिसे प्रकाश गहने
डे आया है १”
मायावती ने बालों को कंधी से सुलराते हुए. कहा---'मिस
: ड्रैवीज्ञियन नाम की एकं आँगरेज्ञ राँड है, जिध्का कुछ पता
नहीं कि कौन है, और क्यों लखनऊ आई । वह बड़ी धूर्व
है । न-मालूम केसे उसने श्रपना प्रभाव सव-समाज में जमा
लिया है । मैंने भी उसके जात में फैंसकर बहुत रुपया खो
दिया है ।”
रानी किशोरकेसरी ने सस्सुक्ता से पूछा-- तुमसे रुपया
कैसे रगा ९” । |
मायावती ने लज्जित कंड से कहा---“उसने स्त्रियों के सुधार
के लिये एक वभर कायम की, जिससें तुम्हारे जसाई का भी
हाथ था, और उसने अपना उत्लू सीधा करने के लिये मुझे उस
समाज की सभानेन्नी बना दिया। मैं यह रहस्थ कुछ समझी नहीं,
और वह सुफे लूट-लूटकर खाती रही ।” ह
रानी किशोरकेसरी ने पूछा---“ तुमने कितना रुपया ठगाया है ?”
मायावती ने उत्तर दिया---'यही कोई दुस-पंद्रह हज़ार ।”
राजी किशोरकेसरी ने साश्चये कहा --दस-पंद्रद हज़ार ! यह
तो ख़ासी रक्तम दहै ! मालूम दोत्ता है, 'सोनपुर' गाँव की सारे
आमदनी इसी सें तुम छचे करतो थीं । ।
सोनपुर नाम का एक गाँव रानी किशोरकेसरी ने साया को कन्या-
दान में दिया था ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...