प्रकाश की बातें | Prakash Ki Baaten

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Prakash Ki Baaten by डॉ. सत्यप्रकाश - Dr. Satyaprakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ पर ऐसी बात है नहीं। धरती पर हवा तो हैं ही । हवा के न रहने पर हमारा तुम्हारा भी धरती पर रहना बिल्कूर असम्भव हो जाता और ये खेल भी न खेले जा सकते । तीन : : परावत्तेन और आवत्तन तुम जानते हो कि किसी वस्तु पर गिरने वाला या उसीसे निकलने वाला प्रकाश जब उससे चलकर या टकरा कर लौट कर हमारी आंखो तक आ जाता है तो हमे वह वस्तु दिखाई देने लग जाती हैं। प्रकाश के टकरा कर लौटने की इस क्रिया को परावत्तंन ( [২6860007 ) कहते हे | प्रकाश का परावत्तेन बहुत जरूरी हैँ । इसके बिना प्रदीप्त वस्तुओ के सिवा और कुछ दिखाई नही दे सकता । लेकिन अगर प्रकाश का परावत्तेंन अचानक बन्द हो जाय तो क्या होगा ” सडक दिखाई देनी बन्द हो जायगी। आसपास के मकान और दूकान नही दीषेगी । सडक पर चरते आदमी भी नजरो से ओभल हौ जायगे । तुम आवाज तो सुन सकोगे, पर किसी को देख नही पाओगे । रात में आकाश मे तारे तो प्रदीप्त होने के कारण दीखते रहेगे, पर चाँद नही दीखेगा । मोटरो की जलती बत्तिया तो दीखेगी, पर मोटर नही । यह सब कंसा लगेगा, इसकी तुम कल्पना कर सकते हो? ओर यह्‌ सव क्यों ? सिफं इसकिए कि प्रकृति का एक काम स्क गया है--प्रकाश का परावरत्तंन बन्द हो गया हं । जवत्तक परावत्त॑न नही होगा, कुछ दिखाई नही देगा । कुदरत के खेल भी कैसे विचित्र हं ।




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