मेरा धर्म केंद्र और परिधि | Mera Dharam Kendra Aur Paridhi
श्रेणी : साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विघटनकारी है। इसके स्थान पर वैदिक आदि उपयुक्त शब्द का चुनाव
अधिक संगत हो सकता है।
मेरा अभिमत है कि आधुनिक भारतीय संस्कृति के निर्माण में वैदिक,
जैन, वीद्ध, सिक्ख, मुसलमान, पारसी, ईसाई आदि सब धर्मो का योग है ।
इसलिए हिन्दू धर्म का अर्थ हिन्दुस्तान मे चलने वाला धर्म किया जाय तो
अधिक स्वस्थता प्राप्त होगी । हिन्दू शब्द को हम उस अर्थ में ले जाएं कि
जिन धर्मो की उत्पत्ति हिन्दुस्तान की भूमि में हुई, वे धर्म हिन्दू हैं और शेष
हिन्दू नहीं हैं। मुसलमान, पारसी, ईसाई आदि धर्म, जिनका उद्गम
भारतभूमि नहीं है, हिन्दू धर्म नहीं माने जा सकते, ऐसा चिन्तन वहुत बार
सामने आता हे । पर आप इतिहास की दृष्टि से देखें तो उद्गम ओर विकास
टोनो धर्म की अभिधा के मूल रहे हैं। बौद्ध धर्म उद्गम की दृष्टि से विशुद्ध
भारतीय धर्मं ड पर विकास की दृष्टि से क्या वह चीनी या जापानी धर्म
नही है ? यदि है तो हिन्दुस्तान मे विकास या प्रसार पाने वाले धर्म
हिन्दुस्तानी (हिन्दू) धर्म क्यो नही हौ सकते ?
हिन्दू संस्कृति संग्राहक, उदार जर व्यापक सस्कृति है । उसमें स्वीकरण
के तत्त्व जितने अधिक होगे, उतनी ही वह तेजस्वी होगी । यदि हम संग्राहक
शक्ति में विश्वास करते हैं, जैसा कि कभी हमारे पूर्वजों ने किया था, तो
हम आज हिन्दू शब्द की पेसी परिभाषा गदं जिसमे हिन्दुस्तान की भूमि में
उपजने वाले ओर फलने वाले-दोनों प्रकार के तत्व समाविष्ट हो जाएं ।
जिस देश मे अनेक जातिया ओर अनेक धर्म हों, वहां उने से किसी
एक जात्ति या धर्म से सम्बद्ध शब्द को व्यापकता प्राप्त नही हौ सकती ।
व्यापकत्ता उसी को मिल सकती ই, জী उन सवका सामान्य आधार है।
किसी भी जाति वा धर्म के लोग हो, वै सव भारतवासी है, अतः भारतीय
है । वे सव हिन्दुस्तानी है, अतः न्द् है ।
इस परिभाषा के विकास में मुझे अनेक समस्याओं का समाधान दीख
पा । वर्तमान पीढ़ी की अपेक्षा भावी पीढ़ी हमसे अधिक लाभान्वित
हमा |
प्राचीन काल में जाति और धर्म मनुष्यों का संग्रह करते थे। इसी
आधार पर अनेक जातियां और अनेक धर्म विकसित हुए।
सव मनुष्यो की रुचि समान नही होती, इसलिए वे अनेक जातियां
हिन्दू ` नया चिन्तन, नयी परिभापा : ¢
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