संस्कृत नाटककार | Sanskrit Natakkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका जब मेरे नवयुवकं मित्र श्री कान्तिकिशोर भरतिया ने मुझसे कहा कि वें संस्कृत सम्बन्धी किसी ग्रंथ का प्रणयन करना चाहते हैं और संस्कृत-नाटककार उन्होंने अपना विषय निर्धारित किया है तो मैंने उनके इस विचार का बहुत अनुमोदन किया और विपय के महत्त्व को देखते हुए उनको प्रेरणा की कि वे उस पर अवद्यमेव अपना म्रंथ निर्माण करें । उन्होंने पुस्तक जिस वैज्ञानिक ढंग से लिखी है प्रत्येक पृष्ठ उसका साक्षी है । लेखन-कार्य में संलग्न रहने के अवसर पर मध्य-मध्य में श्री भरतिया जी मुझसे परामर्श लेते रहते थे और पुस्तक को उपयोगी और बिचारपूर्ण बनाने में मैं उनको यथासम्भव परामर्श भी देता रहता था। पुरतक के पूर्ण होने पर उन्होंने उसकी पाण्डुलिपि मुझे दिखायी और मैंने उसका सम्यक्‌ अध्ययन किया । उनका यह भी आग्रह था कि इस पुस्तक की भूमिका मैं लिखूं। पाण्डुलिपि के अध्ययन करने के उपरान्त मैंने अनुभव किया कि विषय की उपयोगिता और वैज्ञानिक ढंग से उसके निरूपण के उपरान्त मेरी भूमिका की कोई आऑवद्यकता नहीं । संस्कृत साहित्य के विशेष ममंज्ञ एवं बम्बई प्रदेश के राज्यपाल श्रीयुत श्रीप्रकाश जी की प्रस्तावना के बाद मैं यह कल्पना नहीं कर सकता कि मेरी भूसिका कहां तक लाभदायक होगी । जब सुयोग्य लेखक ने कई बार भाग्रहू किया और भपना स्वाभाविक स्नेह दिखाते हुए मुझसे प्राथ॑ना की तो मैं उनके इस आग्रह को अस्वीकार न कर सका । मैं इसे अपना सौभाग्य समझता हूं कि ऐसे ग्रंथ की भूमिका लिखने का मुझे शुभ अवसर मिला जिसके लिए मैं लेखक का हुदय से कृतज्ञ हूं। जैसा कि हमारे युयोग्य राज्यपाल महोदय ने संकेत किया है बहुत दिनों से क्मवरा संस्कृत एक मृत भाषा समझी जाती है। उसके अध्ययन और अध्यापन का क्षेत्र बहुत दिनों से संकीणण चला आया है। संस्कृत विदव की प्राचीनतम भाषा




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