ब्रह्मचर्य | Brahmacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्रह्मचयं १७ चढनेवाला कू कीति पायगा, क्षणिक सुख पायगा, इन्दिय-जीत मनुष्य आत्मानन्द पायगां ओर उसका आनन्द दिन-प्रति-दिन बढ़ता जायगा ! ब्रह्मचर्य -शास्वमें तो एसा नियम माना गया हँ कि पुरुष-वीयं कमी निष्फल होता ही नहीं और होना ही नहीं चाहिए। और जैसा पुरुषके लिए, ऐसा ही' स्त्रीके लिए भी, इसमें कोई आइचर्यकी बात नहीं । जब मनुष्य अथवा स्त्री निविकार होते है, तब वीर्यहानि असम्भावित हो जाती है और भोगेच्छाका सर्वधा नाश हो जाता है। जब पति-पत्नी सन्‍्तानकी इच्छा करते हैं तो, तभी एक-दूसरेका मिलन होता है। यही अर्थ गृहस्थाश्रमीके ब्रह्मचर्यका है अर्थात्‌--स्त्री-पुरुषका मिलन सिर्फ सन्तानोत्पत्तिके लिए ही उचित है, भोग-तृप्तिके लिए कभी नहीं । यह हुईं कानूनी बात अथवा आदर्शकी बात । यदि हम इस आदर्शको स्वीकार करें तो हम समझ सकते हुँ कि भोगेच्छाकी तृप्ति अनुचित है और हमें उसका यथोचित त्याग करना चाहिए । यह ठीक है कि आज कोई इस नियमका पालन नहीं करते । आदरशंकी वात करते हुए हम शक्तिका खयाल नहीं कर सकते; लेकिन आजकल भोग-तृप्तिको आदर्श बताया जाता है ! ऐसा आदर्श कभी हो नहीं सकता, यह स्वयंसिद्ध है। यदि भोग आदर्श है तो उसे मर्यादित नहीं होना चाहिए । अमर्यादित भोगसे नाश नहीं होता, यह सभी स्वीकार करते हैँ । त्याग ही आदर्श हो सकता है और प्राचीनकालसे रहा हैँ। मेरा कुछ ऐसा विश्वास बन गया है कि ब्रह्मचर्यके नियमोंको हम जानते नहीं हें, इसलिए वड़ी आपत्ति पैदा हुई है। और ब्ह्मचर्य-पालनमें अनावश्यक कठिनाई महसूस करते हैं । अब जो आपत्ति मुझे पत्र-लेखकने वतलाई है, वह आपत्ति ही नहों रहती है; क्योंकि सन्ततिके ही कारण तो एक ही वार मिलन हो सकता है; अगर वह्‌ निष्फल गया तो दोनारा उन स्त्री-पुरुषोंका भिलन होना ही नहीं चाहिए । इस नियमको जाननेके वाद इतना ही कहा जा सकता है कि जवतक स्त्रीने गभं-धारण नहीं किया तवतक, प्रत्येक ऋतुकाले वाद, प्रतिमास एक वार स्वी-पुरुषका मिलन क्षतव्य हो सकता है, और यह मिलन भोग-तृप्तिके लिए न माना जाय | मेरा यह अनुभव हूँ कि जो मनुष्य वचनसे और कार्यसे विकार-रहित होता है, उसे २




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