हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन | Hindi Jain Sahitya Parishilan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्तसान काव्यधारा ओर उसकी विशिन्न प्रवृत्तियाँ २१
अहो अलंकार विहाय रत्न कें,
अनूप रत्नन्नय भूपितास हो।
तते इए अस्वर अंग-अंग सें,
दिगम्वराकार विर श्रून्यरद्धो॥
समीप হী জী দহ ভুত ই,
नितान्त इवेतास्वर गा बना रहा।
अम्नध निर्देन्द. शहान হী,
না এবি 8:
(न
जब के ध्वजा ॥
वस्तु वर्मन महकाब्यका दंफि घणना-विधान, ध्यरोजना और
परिस्थिति निम्माण--- হন আন 2 | জভ্ত জাননা জবানস্তুজ प्राय.
हन्य-बाजना तत्वका अभाव व 1 घथ्नादधान ओर परिस्थिति निर्माण
इन दोनो तस्वाकी वहुलता है। कदिने इस प्रकाग्का काद दच्च जायो-
जित नही किया है जो मानवची गगात्मिका हतत्त्रीकों सहज रूपम
झझत कर सके । घठनाओका দল मन्थर गतिसे बढ़ता हुआ आग
चलता है सिससे फ्ठवक्ते सामने घटनाका चित्र एक निश्चित ऋमके
अनुसार ही प्न्तुत त्ता टे !
महाकाव्यवी आविवारिक कथाबन्तुके साथ ग्रासांगक कथावस्तुक
रहना भी महाकाब्यली गन्त्ताकै र्षि आव्व्यक अग ६। प्रासागक
कया मृकथामे तीता उत्पन्न करती ह |
वद्धमान काब्यमें अवान्तर कथा स्पस्न चन्दनावरित, छामदेवसुरेन्द्र-
सवाद तथा कामदेव-द्वारा चद्धमानकों परीक्षा ऐसो ममरपणी झवान्तर
कथाएँ ६, जिनसे जीव्मके आनन्द ओर सान्ठ्यका आभास হী নর্তা শীজা
प्रत्युत सोन्दर्यका জালাবসাহ ছানি কাকা ह |
जगत् यार जीवनक्रै अनेक सपों और व्यापारोपर,
कविने अप्नी विभूतिको चमत्कारपर्ण ढगसे आविर्भत ৮
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