हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन | Hindi Jain Sahitya Parishilan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धर्तसान काव्यधारा ओर उसकी विशिन्न प्रवृत्तियाँ २१ अहो अलंकार विहाय रत्न कें, अनूप रत्नन्नय भूपितास हो। तते इए अस्वर अंग-अंग सें, दिगम्वराकार विर श्रून्यरद्धो॥ समीप হী জী দহ ভুত ই, नितान्त इवेतास्वर गा बना रहा। अम्नध निर्देन्द. शहान হী, না এবি 8: (न जब के ध्वजा ॥ वस्तु वर्मन महकाब्यका दंफि घणना-विधान, ध्यरोजना और परिस्थिति निम्माण--- হন আন 2 | জভ্ত জাননা জবানস্তুজ प्राय. हन्य-बाजना तत्वका अभाव व 1 घथ्नादधान ओर परिस्थिति निर्माण इन दोनो तस्वाकी वहुलता है। कदिने इस प्रकाग्का काद दच्च जायो- जित नही किया है जो मानवची गगात्मिका हतत्त्रीकों सहज रूपम झझत कर सके । घठनाओका দল मन्थर गतिसे बढ़ता हुआ आग चलता है सिससे फ्ठवक्ते सामने घटनाका चित्र एक निश्चित ऋमके अनुसार ही प्न्तुत त्ता टे ! महाकाव्यवी आविवारिक कथाबन्तुके साथ ग्रासांगक कथावस्तुक रहना भी महाकाब्यली गन्त्ताकै र्षि आव्व्यक अग ६। प्रासागक कया मृकथामे तीता उत्पन्न करती ह | वद्धमान काब्यमें अवान्तर कथा स्पस्न चन्दनावरित, छामदेवसुरेन्द्र- सवाद तथा कामदेव-द्वारा चद्धमानकों परीक्षा ऐसो ममरपणी झवान्तर कथाएँ ६, जिनसे जीव्मके आनन्द ओर सान्ठ्यका आभास হী নর্তা শীজা प्रत्युत सोन्दर्यका জালাবসাহ ছানি কাকা ह | जगत्‌ यार जीवनक्रै अनेक सपों और व्यापारोपर, कविने अप्नी विभूतिको चमत्कारपर्ण ढगसे आविर्भत ৮




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