राज सन्यासी | Raj Sanyasi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
376
श्रेणी :
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श्यामू संन्यासी - Shyamu Sainasi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ध्तिजशञा का पालन न कदं तो रौरव नक मँ गिर १७
व गया, वेटे ! बहुत अच्छा किया केसर | भैया तेरे लिए
तो....” इद्ध बोलने लगे, परन्तु थक गये। तेरे लिए तो बेटा. मैंने
मोत को रोके रखा या, मेरे लाल |
(पिताजी ! क्या ই १ कौन-सा काम था?
षृद्ध कु न बरोले । थोड़ी देर ग्रं मूदे चुप पडे रदे ।
(पिताजी, कौन-सा काम था ? केसर ने पुनः पूछा ।
भीमदेव महाराज क्या कर रदे है ¢
“पिताजी, वह तो संघ पर चढ़े आ रहे हैं ! श्रमी तो आयबू पर घेरा
डाला है [?
' केसरदेव ने वृद्ध की ओर देखा। अभी तक उनकी ग्रोखिं मदी
हुई थीं |
(पिताजी कौन-सा काम था, यह तो श्रापने बतलाया दी नहीं |
हो .. गा ! तब तो कहेँ । बड़ा तो इनकार कर ही चुका है |
केसरदेव ने चारण शंकर की ओर देखा | चारण ने अपना मुँह
चूद्ध के समीप ले जाकर कहा, 'मकवाणाजी, कैसे जाना कि नहीं होगा १
चौसठ भुजावाली मेरी माता की छुत्र-छाया जिस पर है उससे भी यदि
काम न बना तब फिर किससे बनेगा | आप तो अपने मन की वात कह
दीजिये, जिसमें मन की व्यग्रता मिट सके ओर शान्ति हो ।!
बड़े ने तो हाथ थो उलि...
कोई चिन्ता नहीं--उसने भले ही धो डाले....!
वशतेरा--परताप--इनका भी मन टोह लिया । इसी लिए जी पीछे
इट रहा है चारणजी !?
बापू !! केसर अपने सदा के निश्चयात्मक स्वर में बोला, अब मन
को बात मन में रखिये मत | जो कुछ मी दिल में हो कह ही दीजिये, पिता-
जी; मैं तो बैठा ही हू न !?
उसने चारों ओर देखा । सामन्त-मंडल निरुत्साहित हो रहा था
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