आर्य जीवन | Aarya Jivan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूचना १५
भृत्य, संगी, संसर्गी, कुछ भी क्यों न हो, अपता जीवन हमेशा अपने ही
ढंग से चलाते है, भले घुरे की पहचान कर जो जभोवश्यक है उसे सीख
रत्त है और उसमें ही उनका जीवन विकसित और वृद्धिगत होता है। वह
अपना ब्यक्तित्व खो कर दूसरे के आादर्श को नहीं अपना छेते | 'बांलाउपि
सुभापितम्' अधांत् 'बालक से भी अच्छी बात लेछेना' वलिष्ट जीवन
का लक्षण है, लेकिन गंगा गग्ये गंगाशास और जमना गये
[क है श~
जमनादास,चाली ट्ाल्त बिल्कुल दुबल स्यक्तिस्व को प्रगट करती है ।
भारत में ग्रीक, शक, मुसल्सम न और ईसाईयों ने देश को जीतने और
भपना धर्म फेलाने की, बहुत चेष्टाएं की । लाखों नर नारियों के सनातन
भादर्श को उन्होंने बदल भी दिया। लेकिन भारत का सामूहिक जातीय
जीवन इन चेष्टाओं से विनष्ट रहीं हना । विदेशियों से कभी २ कुछ
आइरण कर भारत ने अपने व्यक्तित्व को पुष्ट अवश्य किया, लेकिन
कमी किसी प्रभाव से वह अपने को सुरा नष वेड । धमं प्रचार के लिये
विदेशियों ने जुल्म किये, पादरी लोगों ने लोभनीय चातुर्य फेला कर
धोखा दिया, आज भी नबपाहषात्य सभ्यता की आपाद-मोहन रूपच्यटा
भौर कृत्रिमता के आशुठ्सिदायक वेभब अपरिक्षात भाव से इस
जाति के जीवन का आदर्श बदलने के लिये उतारू ভরত हैं । लेविन इतना
सब कुछ होने परभी आय॑ का सनातन धर्म और सभ्यता परम्परा-विधान
की भपरिश्षेय मौंल्किता कर्म-सय जीवन की साधु-स्वाभाविक धर्म॑
निष्टा भौर समाज के प्राकृतिक ओर कर्तव्य-मय प्रतिष्टान- आदि ने भार्य
जीदन को भारत में सदा जागृत रम्खा है और जागृतरखगे ।
भायं ने पना व्यक्तित्व वैदेशिकः प्रभाव को नहीं बेच डाला यष्टी टसकी
एक विशेषता नही है। साथ ही भारतवर्ष सें वेदेशिक बहुन कुठ दल प्रयोग
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