अद्भुत आलाप | Adbhut Aalap

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Adbhut Aalap by महावीर प्रसाद - Mahaveer Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक योगी की साप्ताहिक समाधि १७ मिला । कीलें निकालकर बॉक्स खोला गया | शरीर से लिपदी इई मलमल की चादर धीरे-धीरे खोलकर अलग की गई। आंख, नाक, कान ओर मुंह का मोम निकाला गया । शुह জুল अज्छी तरह घाया गया ! इत्तना हो चुकन पर योगिवग्ें वहाँ से हट आया, आर वेदी की प्रदक्षिणा करके उसने ओंकार का गान आरंभ किया | वाजे मी ভজন ज्लसे। तीसरी प्रद्‌ ज्िणा के समय समाधि-सग्त योगिराज का शरीर कुछ हिला, ओर कुछ ही देर में वह उठकर बेठ गए । उन्होंने अपने चारो तरफ़ इस तरह देखा, ज॑से कोई सोते से जगा हो । “यहाँ तक तो सब लोग पृ्चत्‌ वेठे रहे। परंतु जहाँ योगिराज उठे, ओर जमीन पर उन्होंने अपना দহ হাঃ অনা दशकों ने कोलाहल आरंभ कर दिया । शंख, भेरी, नगाड़ों ओर नरसिंहों के नाद ने पृथ्वी ओर आकाश एफ कर डाला । सबके मेँंह से एक साथ आदराथेक शब्दों के घोष से कानों के परदे फटने लगे | दरावर दस मिनट तक तुमुल्ल-नाद दोता रहा। किसी तरह धीरे-धीरे वह शात हुआ | ज्ञिस क्रम से योगिराज ने वेदी पर ५दापण किया था; उसी क्रम से उन्होंने प्रस्थान भो किया | सबके पीछे आप, उसके आगे वे तीन जरा-जीरे योगी, उनके आगे ओर सच लोग | इस तरह परमहंसजी पास के एक पर्वत की एक गुफा की तरफ़ गए। सुनते हैं, अब बह अंत समय चक चहीं, उसी गुफा में, रहेंगे शोर फिर कभी बस्ती सें न आदेंगे ।?




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