अद्भुत आलाप | Adbhut Aalap
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक योगी की साप्ताहिक समाधि १७
मिला । कीलें निकालकर बॉक्स खोला गया | शरीर से लिपदी
इई मलमल की चादर धीरे-धीरे खोलकर अलग की गई।
आंख, नाक, कान ओर मुंह का मोम निकाला गया । शुह জুল
अज्छी तरह घाया गया ! इत्तना हो चुकन पर योगिवग्ें वहाँ
से हट आया, आर वेदी की प्रदक्षिणा करके उसने ओंकार
का गान आरंभ किया | वाजे मी ভজন ज्लसे। तीसरी प्रद्
ज्िणा के समय समाधि-सग्त योगिराज का शरीर कुछ हिला,
ओर कुछ ही देर में वह उठकर बेठ गए । उन्होंने अपने चारो
तरफ़ इस तरह देखा, ज॑से कोई सोते से जगा हो ।
“यहाँ तक तो सब लोग पृ्चत् वेठे रहे। परंतु जहाँ
योगिराज उठे, ओर जमीन पर उन्होंने अपना দহ হাঃ অনা
दशकों ने कोलाहल आरंभ कर दिया । शंख, भेरी, नगाड़ों ओर
नरसिंहों के नाद ने पृथ्वी ओर आकाश एफ कर डाला । सबके
मेँंह से एक साथ आदराथेक शब्दों के घोष से कानों के परदे
फटने लगे | दरावर दस मिनट तक तुमुल्ल-नाद दोता रहा।
किसी तरह धीरे-धीरे वह शात हुआ | ज्ञिस क्रम से योगिराज
ने वेदी पर ५दापण किया था; उसी क्रम से उन्होंने प्रस्थान
भो किया | सबके पीछे आप, उसके आगे वे तीन जरा-जीरे
योगी, उनके आगे ओर सच लोग | इस तरह परमहंसजी पास
के एक पर्वत की एक गुफा की तरफ़ गए। सुनते हैं, अब बह
अंत समय चक चहीं, उसी गुफा में, रहेंगे शोर फिर कभी
बस्ती सें न आदेंगे ।?
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