प्रबल - परीक्षा | Prabal Pariksha

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Prabal Pariksha by वीरेंद्र सिंह - Veerendra Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হে. अ्रबल-परीक्षा [1 111 (11 111 111 111 1110111 कहीं से रूपनगर के राजा रूपसिंह की सुपुत्री सौन्दर्य-सुषुमा किरणमयी के सौन्दयं कीः चर्चा सुनकर, उसकी सत्यता काः पता लगाने के लिए शाही महल की प्रस्तुत दासी मुरादन को नियुक्त किया है श्लोर उसने जो विवरण वहाँ लाकर उनको दिया है उसका ज्ञान पाठक प्रस्तुत वार्तालाप से प्राप्त कर चुके हैं और उस प्रेम की कसक से भी परिचित हो चुके हैं, जिसका कि आमेर-नरेश शिकार हुये हैं। महाराज जगतसिह तो इस वार्ता के पदचात्‌ अपने डेरे को चले गये; किन्तु मुरादन, जब अपनी सफलता पर प्रसन्न होती हुई, राजमहल की ओर को मुड़ने लगी तो उसका एक दूसरे युवक सरदार से सम्पर्क हो गया; जिसे श्रम्बर-नरेश के समान ही रौब-दाब वाला कहना होगा । दासी ने उस सरदार को भी नम्रता श्रौर ताजीमःके साथ सलाम किया । मुरादन को पहचानकर सरदार ने हँसकर कहा--- “जियो, मुरादन ! मेरे चाँद जियो !! आजकल तुम्हारी मुलाक़ात ही नसीब नहीं होती । क्या बात है, किन मामलों में उलभा रहता है यह नूरे आलम ?” मुरादन--रुहेलखण्ड के नवाब जनाव शेरशाह साहब के वास्ते बन्दी का जी-जान सब कुछ हाजिर है। कुछ दिन से बाँदी बाहर मुहीम पर चली गई थी । मेरे लिये जो खिदमत हो बताई जाय, द . अरब पाठकों को मालूम हो गया होगा कि जो सरदार मुरादन के साथ भ्रव दूसरी बार मिलकर बातचीत में संलग्न हुआ है वह रुहेला नवाब . शेरशाह है। शेरशाह--( हँसकर ) म्रुरादन जैसी नाज्जुक-बदन कामिनी और यह मुहीम.? खैर, किस बदनसीब शाहु या राजा-महाराजा को फतह करने . गई थीं मेरी मौज्जमा ? क्‍या इस ख़ाकसार को ऐसे छोटे-मोदे कामों के लिये भी काफ़ी नहीं समझा गया ? ६ पि मुरादन-सरकार! बंदी को शरमिन्दान करें श्रामेर के महाराज




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