युद्ध - यात्रा | Yudd Yatra

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Yudd Yatra by डॉ सत्यनारायण - Dr. Satyanarayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ললহী मुसोलिनी के सैनिक बनो ।! “विव इल डुच'--“मुसेलिनी জিন্হালাত 1? डुगडुगी पिटती जा रही थी । इस बार लूसी से न रहा गया। जिधर से आवाज़ आ * रही थी उधर की खिड़की उसने बंद कर ली और कहा -- “में इन जानवरों के देखना नहीं चाहती | वर्दी पहन लेने पर तो इनमें फ़कृत दुम की कसर रह जाती है। इटालियन भी क्या कभी सैनिक बन सकते ह £ रास्ते से घर घर करती हुई एक मे(टर पर लदी ताप निकल गई | हम लेगों के घर की पतली दीवार हिलने लगीं । थये सब पागल हो गये हें ! लड़ाई के सिवा इन्हें और कुछ सूकता ही नहीं। ओर ते ओर, अपने साथ-साथ अब ये इमे भी खींच ले जाना चादते ई! मेरी ते तबियत ऊब गई |, “अ्रभी ते तैयारी ही हो रही है ।--मैंने कहा । “तैयारी क्‍या ? इटली की सीमा में प्रवेश करते ही तुम्हें दिखलाई नहीं देता कि लड़ाई छिड़ चुकी है !? “हाँ, नवीनता ते। ज़रूर है ।? 'इसे तुम नवीनता कहते हो ! मालूम नहीं, दम टीरोली अभी द्वी कितना भेल चुके । यहाँ के किसी काफ़े वा नाचघर में 'मायिज़? ओर 'युद्धन॒त्य” के सिवा ओर कुछ दिखलाई देता है? कितने दिनों से मेरी तबीयत कर रही है कि---'री मत- ও




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