हिंदी शब्दसागर | Hindi Shabdsagar
श्रेणी : भाषा / Language
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
77 MB
कुल पष्ठ :
558
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)অমুক,
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पाथोपि । निधि । दंदुजनक । तिमिकोष। क्षीराब्धिं ।
। ्नितत्ु । वाहिनीपति । गंगाधर । दारद् । तिमि । महाक्षय।
वारिराशि । शैछशिविर । महीप्राचीर । पयोधि | निस्य ।
आदि आदि ।
(२) किसी विषय या गुण आदि का बहुत बढ़ा आगार |
(३) एक प्राचीन जाति का नाम ।
समुद्रकफ-संज्ञा पुं० | स॑ं० ] समुद्रफेन ।
सर्ुद्रकांची-संज् खी० [ सं० समृद्रकाधी ] प्रथ्वी जिसकी मेखला
समुद्र हे ।
सम्ुद्रकांता-संज्ञा ली० [ सं० सम॒द्रकानता |] नदी जिसका पति समुद्र
माना जाता है और जो समुद्र में जाकर मिलती है ।
समुद्रगा জী [५० ] (4) नदी, जी समुद्र कीं ओर गमन
करती है| (२) गंगा का एक नाम ।
1
लमुद्रगुप्त-रक्ञ प [भ] गुक्च राजवंडा के एकं वडूत बद, प्रसिद्ध :
३७६३
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और वीर सम्राह का नाम जिनका समय सन ३३५ से ३७५ '
ई० तक्र माना जाता हैं। अनेक बड़े बड़े राज्यों को जीतकर |
বাল साम्राज्य की स्थापना इन्हींने की थी। इनका साम्राज्य
हुगली से चंबड तक और हिमालय से नम्मंदा तक विस्तृत
था ৯ पाटलिपुत्र में इनकी राजधानी थी; परंतु अयोध्या और
कौशांबी भी इनकी राजघानियाँ थीं। हन्होंने एक बार
अश्वमेघ यज्ञ भी क्रिया था ।
समुद्रुलुक-संज्ञा पुं० | ৮ ] আবাল জুলি जिन्होंने चुल्लुओं
से समुद्र पी डाछा था।
सपुद्रआ्-वि० | ২০] समुद्र से उत्पन्न | समुद्रजात |
বাই पुं> मोत्री, हीरा, पन्ना आदि रत्न जिनकी उत्पत्ति समुद्र
से मानी जाती है ।
समुद्रकाग-संशा ५० दे० “समुद्रफेन
समुद्ृद्यिता-पंज्ञा ख्री० [ सं० ] नदी । दरिया ।
“समुद्रनवनीत-संज्ञा पुं [ सं“ ] (४) अग्रत । (२) चंद्रमा ।
सपुद्रनेमि-तज्ञा खी [ घ. ] परथ्वी।
समुद्र पल्ली-य सीत [ सं“ | नदी । दरिया ।
समुद्रपात-संज्ञा पुं० [२० समुद्र + ५ पात = पत्ता] एकं प्रकारकीं
पस्ाइदार ऊता जा प्रायः सार भारत म॑ पाई जाता हैं হক
इंठल बहुत मजबूत और चमकीले होते हैं और पत्ते प्राय
पान के आकार के द्वोंते हैं। पत्ते ऊपर की ओर चिकने और
सफेद तथा नीचे की ओर हरे और मुछायम होते हैं। इन
पत्तों में एक विशेष गुण यह होता है कि यदि घाव आदि
पर इनका उपरी चिकना तल रखकर बधा जाय, तो वह
धाव सूख जाता है। और यदि नीचे का रोऐँदार भाग रख-
कर प्रेद् आदि पर धा जाय, तो वह पककर बह जाता
है | वसंत के अंत में इसमें एक प्रकार के गुलाबी रंग के
फूल लगते हैं जो नली के आकार के * बे होते हैं। ये फूल
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सभुद्रयात्रा
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प्रायः रात के समय खिलते हैं और इनमें से बहुत मीठी
गंध मिकछती है । इसमें एक प्रकार के गोल, चिकने, चम-
कीरे भौर इलछके भूरे रंग के फल भी झगते हैं। प्रेयक के
अनुसार इसकी जड़ बलकारक और आमबात तथा स्नायु'
संबंधी रोगों को दूर करनेवाली मानी गईं है; और इसके
पत्ते उत्तेजक, चर्म्मरोगनाशक और घाव को भरनेचाले कहे
गए हैं । समु दर का पत्ता । समु दरसोख ।
समुद्रफल-संज्ा पुं> [ सं० | एक प्रकार का सदाबहार वृक्ष जॉ
अवध, बंगाल, मध्य भारत आदि में नदियों के किनारे और
तर भूमि में तथा कोंकण में समुद्र के किनारे बहुत अधिकता
से पाया जाता है। यह प्रायः ३० से ५० फुट तक ऊँचा
होता है । इसकी लकड़ी सफेद और बहुत सुछायम होती
है और छाल कुछ भरी या काछी होती है इसके परे प्रायः
तीन हूंच तक चौड़े ओर दस देच तक रवे होते हैं।
शाखाओं के अंत में दो ढाई इंच के भेरे के गोलाकार सफेद
फूल लगते हैं । फल भी प्रायः इतने दी बड़े होते हैं जो
पकने पर नीचे की ओर से जिपटे या चोौपहल हो जाते हैं ।
वैद्यक के अनुसार यह चरपरा, गरम, कड़वा और त्रिदोष
नाशक होता तथा सकज्ञिपात, श्रनि, सिर के रोग और
भूतबाधा आदि को दूर करता है ।
समुद्रफेग-संत्ञा पुं० [ सं* | समुद्र के पानी का फेन या झाग जो
उसके किनारे पर पाया जाता है और जिसका व्यवहार
ओपषधि के रूप में होता हैं। समु दरफेन । सम दरझाग।
विशेष--समुद्र में लहर उठने के कारण उसके खारें पानी में
एक प्रकार का झाग उत्पन्न होता है जो किनारे पर आकर
जम जाता है । यही झाग समुद्रफन के मास से बाजारों में
बिकता है । देखने में यह सफेद रंग का, ग्वर्खरा, हऊका
और जालीदार होता हैं। इसका स्वाद, फोका, तीखा और
खारा होता है | कुछ छोग इसे एक प्रकार की मछली की
हड्डियों का पंजर भी मानते हैं। वैश्क के अनुसार यह
करेखा, हका, शीतर, सारकः, रचिकारक, नेत्रां को हिल-
कारी पिथ तथा पितत विकार न्क आर नेश तथा क
आदि के रोगों को दूर करनेवाला होता है ।
समुद्रमइकी-संजशा ख्री ० [ सं० ] सीप । सीपी ।
समुद्रमथन-संज्ञा पुं० | सं० | पुराणानुसार एक दानव का नाम ।
समुद्रमालिनी-संज्ञा खी० [सं« | प्रभ्वी जो समुद्र को अपने चारों
ओर माछा की भाँति चारण किए हुए हैं ।
समुद्रमेजला-संजा स्ली० [ सं* ) प्थ्वी जो समुद्र को मेखला के
नी,
समान चारण किए हुए हैं |
सपुद्यात्रा-रोशा स्री० [ स॑* | समुद्र
यात्रा ।
ए कः, ४ बा
के द्वारा दूसर देशों की
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rakesh jain
at 2020-12-02 16:04:05