अद्रुत आलाप | Adroot Alap
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक योगी की साप्रादिकः समथि ३
#सुबद्द द्वोने के बहुत पहले ही से दरद्वार फे आस-पास का
आंत कोर्सो तक कोछाइल और घूम-्धड्ाके से मर गया। हर
सडक से दारो यात्री दर मेँ घुसने लगे। जैसे-जैसे मंदिर की
चरफ़ यात्रियों के मुँह-के-मुंड चलने लगे, वैसेनद्ी-बैसे शंरक,
भरी और नगाड़ों के नाद से आसमान फटने लगा। प्रत्येक
गक्षी-कूचा आदमियों से ठ्साउस भर गया। नीचे यद दाल,
ऊपर निरभ् आकाश में लाललाल सूर्य अपनो तेज़ किरणों को
धर्षा करने लगा
#हम लोगों ने शक्कर के साथ थोड़ीसी गेहूँ की रोदी और
फह्न खाकर संदिर की तरफ़ भ्रस्थान दिया । इसी मंदिर के दाते
में योगिराज समाधिस्य दोने को ये। हम घरा जल्दी गए, जिसमें
बैठने को अच्छी जगद मिल जाय। मेंदिर के फाटक पर हमें
कुछ पुजारी मिले । उन्होंते इमारी अगवानी फी | हमारे मित्र
के दे मित्र ये । वे लोग इमें मंदिर के हाते में एक बहुत विरुतं
चोकोन अगद में ले गए। बद्द एक बड़ी वेदी सी थी। वहाँ
पर योगिराज समाधिस्थ द्ोनेवाले ये। इज्ार्रो पंडित, पुजारी
और पुरोदिद दुष्यफेन-निम वद पने हुए वरदा पदलेष्टी से
ইতি ই। হল অহা पते दी ये छ उपस्थित चादमिय मे दत्ते
सना फैल गई 1 स श्याकस्मिक गढ़यद् से सूचित हृश्रा चि
कोई विशेष षाद धोनेवाली है ।
८इमारे मित्र ने कद्ा--परसइंस महार्मा पद॑त के सीचे हा
गए । भव षड यदा आ रहे हैं। आप शायद जानते होंगे ठि
User Reviews
No Reviews | Add Yours...