श्रीमद्रामरसामृत | Shreemadramarsamrat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाठकारड ५ सरवससे वरवस दिए, न॒प हुड लाल ललाम । असुर-खवारी करि करी, मख-रखवारी राम ॥९०॥ कंज नयन হাসল অল, भव-भय-भजन नाम । मुनि-मन-रंजन हार हो, रहो चिरंजय गम ! ॥४१॥ जनक-नगर जग-भट जुट, सीय-सुयंवर-काम । राजि! विलोचन पोखिये, राजिव लोचन राम । ॥४२॥ साप-ताप पापनि छुटी, जा प्रताप मुनि-बाम । वा पद-रजते पाप मम, रज करि डरो राम ! ॥४३॥ हरि-जनके हियमें अहो !, रहे कहांते काम ?। जित छवि छाज रावरी, रति-पति ज्ञाजे राम । ॥४४॥ भोरते कोर रह, जिन छोर सुख-धाम । धोर आनद-अमियके, पग तर तौर राम । ॥४६॥ जानति हों जग-पति ! जगत, विगत पं पशु जाम । जो इन पायन रत नहीं, पाय नर-तनहिं राम ॥४६॥ मिथिला-मोहन प्रसंग | सरस सफल मिथिला दिप, प्रफुलित सुकृत-प्रताप । अमल उजल ऊ चे अटा, आतम मनो अपाप ॥४७॥ १ नेश्नोंकी पंक्षित




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