भूतनाथ की जीवनी | Bhotnath Ki Jeevani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhotnath Ki Jeevani by दुर्गाप्रसाद खत्री - Durgaprasad Khatri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about दुर्गाप्रसाद खत्री - Durgaprasad Khatri

Add Infomation AboutDurgaprasad Khatri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(-. 2 , 3 বধ केः उड़ियां मिली और तब ऊपर चढने के सीढियां दिखाई दो ।गोपालसिंदह खीढियां चढ़ कर ऊपर पहुंचे और अब जनन्‍हीने अपने फे। तिलिश्फी बाग के तीसरे दर्ज में पाथा । यह एक बड़ा बाग था जिसके बीच से एक नहर भी जारी थी और बहुत से मेवे तथा फलों फे वेह भी भोज थे । गोपा लि श्त चाय मे चारो दरसु नजर दौड रहे थे कि खा अने की तरफ थोडी दी दुर पर वनेहप संग्र के चनु दरे कमी तरप उनकी मदर पडी ओर साथ हीवे छद्‌ चैक से गये, क्योंकि उस चोतरे के ऊपर उच्होंने उसी औरत के बेड्ेश पड़े हुए देखा जिसकी खेाज़ में वे यहां तक आये धे) तेजी के साथ चल कर वे उस चबूतरे के पास पहुँचे और एक स्क उस बेहोश औरत की तरफ देखने लगे | इम नहीं कह सकते कि अपनी उच्च मे अब तकत मोपा लिंह ने किली पेसी औरत के। देखा था या नहीं जे! खूबसूरती में 1 औरत का मुकाबला कर सके। इसका चेहरा, नख्- ভিজ, জন আব ভালা হা था कि बड़े बड़े योगियों और तपरिवयों का बस में कर छे, गोपारूसिहद ते चीज ही कया थे ! वे सकते की री हालत में एक टक खड़े उसके चेहरे को वरफ दे खने लगे | कमी उसके सुडौल मुखड़े के। देखते, कमी पतली गरदन के, कभी मुलायम पझुल्लायम हाथों पर निगाह डाछते ओर कभी नाझ्ुक पैरों पर | देखते देखते उनकी यह हालत हे गई ছি तनेयदन को -छुध', ज्यती ष्टी) चे म्ल के




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now