स्नेह - बंधन (ऐतिहासिक-नाटक) | Sneh Bandhan (Etihasik-Natak)

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Sneh Bandhan by श्री व्यथित हृदय - Shri Vyathit Hridy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्ेह-बन्धन १२ | সি क्र ओर देखिये, उसी ओर अन्धेर, उसी ओर उपद्रव, उसी भोर राक्षसी दिला काण्ड { रोदन, चिद्ठाह, भर॒ करुणा के अतिरिक्त कहीं कुछ दिखा ही नदीं देता । भगवान ही मेवाड की रक्षा कर ! [ दौडक 'भिखारिनी का बन्धन खोलते हैं । ] कहो बहन, तुम्हें कौन इस वृक्ष से আঁশ गया ? क्‍या तुम मुझे उसका नाम बता सकती হী? भिखारिनी ( कंपित स्वर में )--नहीं, मैं उसे नहीं पहचानती | इ इतना कड सकती ह, वे दोनों सिपाही थे। म अपने मानं पर ची जारदी थी । सज्ञे पकड खाये | कहने लगे, तुम्हें रेणुका बनना 'यड़ेग़ा । मैं रोने छगी ! मुझे एकने वृक्ष से बॉय दिया, ओर दूसरा मेरा णरा. दबाना चाहता था । किन्तु सौभाग्य से गला दबाने के पहले आप आ पहुँचे । शक्तखिह-( कोध को दवाकर )-रेणुका को दध्या ! जान पड़ता है, रेणुका की हत्या करनेवालों ने अपने मनो-विनोद के लिए यह अभि. 'नग्म रचा था | अच्छा बहन, अब तू जा ! तुझे कोई न बोल सकेगा | ५ मिखारिनी का प्रस्थान, शक्तसिंह कोध की गंभीर अवस्था में कुछ सोचते हैं ] [ पट-परिवत्तेन ]




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