ज्ञानवाद | Gyanwad
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
187
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्ञानदान | १५
थे। उनका उपदेश था--संग से मोह उत्पन्न होता है, मोह से काम,
काम से क्रोध ओर क्रोध से बुद्धि विश्रभ हो जाता हे. । बुद्धि विश्वम
ही सवनाश हे। महर्षि परम ज्ञानी ओर वेदोद्गाता थे ।
अमरत्व का ज्ञान प्राप्त करने के लिए जिज्ञासु ब्रह्मचारियों का
दल उनके चारों ओर बना रहता | दूर-दूर से राजा और ऋषि
अनासक्तियाग का उपदेश लेन वहाँ आते । चातुर्मास आने पर
अनेक परित्राजक संन््यासी भी आश्रम में आ टिकते |
चातुर्मास आरम्भ होने पर आश्रम में निवास करने के लिए
आनेवाल परित्राजक तपरिवबयों में ब्रह्माचारी नीड़क भी आये।
ब्रह्मचारी नीडुक को योवन से पूव ही ज्ञान लाम हो गया था ।
सांसारिक मोहजाल में न फैंस उन्होने ब्रह्मचयंसे दी वेराग्य
क] मागं ग्रहण कर लिया । आयु अधिक न होने पर भी उनका
ज्ञान ओर योग परिपक्व था । विषयां की निस्सारता क तत्व को
ज्ञान-चक्त द्वारा पहचानकर उन्होने परम सस्य ब्रह्म का सान्निध्य
प्राघ्र कर लिया था। अनासक्ति ओर समाधि द्वारा मूत्युलोक
ओर ब्रह्मलांक में उनका समान अधिकार था। वे एक ही समाधि
में तीन ओर चार दिन तक बेठे रहते । एक समय समाधि
अबस्था में एक गौरेया ने उनकी जटा में नीड़ (घोंसला) बनाने
का यत्न किया था। तब से उनका नाम “नीड़क'! पड़ गया और
उनकी समाधि की शक्ति की महिमा दसों दिशाओं में फेल गई ।
महर्षि दीघलोम ने ब्रह्मचारी नीड़क की अभ्यथ्नाकी ओर
उनसे प्राथना की कि अपने अलोकिक ज्ञान की शक्ति द्वारा उन
लोगों का अज्ञान दूर करें जो ज्ञानयोग के नाम पर तक का
आश्रय ले अपनी वासना को बुद्धि की लम्पटता द्वारा तृप्त करने
की चेष्टा करते हैं । ५
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