हिंदी भाषा का एक बृहत् कोष | Hindi Bhasha Ka Ek Brihat Kosh

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Hindi Bhasha Ka Ek Brihat Kosh by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंगभूत मनोवेगों को प्रकद करना | गाने में शरीर की विविध मुद्राओं दवारा चिन्त के उद्वेगो का प्रकाशन । अंगभूत-वि० [ सं० ] अंग से उत्पन्न । देह से पैदा । (२) अंत- गत । भीतर । अंतभू त । संज्ञा पुं० पृश्र | बेठा। अंगमद-संशा पुं० [ सं० ] (१) दृड्डियां का फूढना। हड्डियों में दर्द । हड़फूटन रोग । (२) संवाहक । अंग मलनेवाल्य । हाथ पैर दुबानेवाला । नौकर । सेवक । अंगमदल-संशा पुं० [सं० ] अंगों की मालिश । देह दबाना। हाथ पैर दबाना । अंगरक्षा-संज्ञा पुं० [ सं० ] शरीर की रक्षा | देह का बचाव। बदन की हिफ़ांजत । श्रंगरखा[-संशा पुं० [ सं० अग-देह--रक्षक-्बचानेवाला ] হাহ अंगा । चपकन । एक पहिनावा जो घुटनों के नीचे तक लंबा होता है ओर जिसमें बाँवने के छिये बंद टेंके रहते दें । इसे हिन्दू ओर मुसलमान दोनों बहुत दिनों से पहिनते आते हैं। इसके दो भेद हैं-- (१) छः कलिया, जिसमें छः कलियाँ होती हैं ओर चार बंद लगे रहते हैं । दसके बगल के बंद भीतर वा नीचे की ओर बोधे जाते हँ, ऊपर नहीं दिखाई १इते अथात्‌ इसका वह प्या जिसका व॑द बगरू मे बाधा जाना हे भीतर वा नीचे होता है, उसके ऊपर वह पला होता हैं जिसका बंद सामने छाती पर बाँधा जाता है । (२) बालाबर, जिसमें चार कलियाँ होती हैं ओर छः बंद लगे रहते हैं। इसका बगल में बॉधनेवाला पल्ला तो नीचे रहता है आर दूसरा उसके ऊपर छाती पर से होता हुआ दूसरी बग़ल में जाकर बोधा जाना हं । अतः इसके सामने के आर एक बगल के बंद दिखाई पढ़ते हैं । अझंगरस-संज्ञा पुं० [ सं० ] किसी पत्ती वा फल का कूंट कर निचोड़ा हुआ रस । स्वरस । रोग । अंगर[[-संज्ञा पुं० [ स० अङ्गार | (१) अगार । अगारा । दृहकता हुआ कोयला । (२) बल के पेर टपकने वा रह रहकर ददं करने का एक रोग । इस रोग में श्र बार बार पर उठाया करता है अंगराग-संज्ञा पुं० [सं० ] (१) चंदन आदि लेप। उबटन | बटना । केसर, कपूर, कस्सरी आदि सुगंधित द्व॒ब्यों से र दुआ चंदन जो अंग में छगाया जाता है। (२) वस्त ओर आभूषण । (३) शरीर की शोभा के लिये महावर आदि अंगसंग-संज्ा पुं०, रँगने की सामग्री । (७) ख्त्रियों के शरीर के पॉच अंगों की सजावट--माँग में संदुर, माथे में रोली, गाल रचना, केसर का लेप, हाथ पैर में मेंहदी वां शवर । (५) एक प्रकार की सुगंधित देशी बुकनी जिसे मुँह में लगाते हैं । अंगराज-संशा पुं० [ सं० ] (१) अंगदेश का राजा कण । (२) द अंगसख्य राजा छोमपाद जो दशरथजी के परम मित्र थे । ख्रंगराना *-क्रि० अ० दे० ““अँगड़ाना |”? ऑँगरी-संजशा ख्री० [ सं० अज्ज--रक्ष ] (१) कवच । घझिलम । बख्तर (बक्तर) । संज्ञा स्ली० [सं० अंगुलीय] अंग्रुलित्राण । डँगलियों को धनु की रगढ़ से बचाने के लिये गोह के चमड़े का दस्ताना । अंगरेज़-संज्ञा पुं० [ पुरतत० इंगलेज ] [ वि० अंगरेज़ी ] हँगलैंड देश का निवासी । इँगलिस्तान देश का रहनेवाछा आदमी । अँगरेज़ी-वि० [ हि० अंगरेज ] अंगरेज़ों की । इंगलेंढ देश की। विलायती । संज्ञा खी० अँगरेज़ लोगों की बोली । इगलेंड निवासियों की भाषा । अँगरेजी भाषा | अंगलेट-संज्ञा पुं० [ सं० अन्न ] शरीर की गठन । काटी | उठान । देह का ढाचा । श्ंगवना^क्रि० स० [सं अङ्ग ] अंगीकार करना। स्वीकार करना । (२) ओढ़ना । जपने सिर पर रेना । (३) सहना । बरदाइत करना । उठाना । उ०--घरती भार न गवै, पौव धरत उठ हाल । कूम टूट मुक फाटी, तिन हस्तिन की चार ।- जायसी । अंगवारा|-संशा पुं० [ सं° अङ्ग~भाग, महायता+-कार ] (9) गाँव के एक छोटे भाग का मालिक । (२) खेत की जोताईं में एक दूसरे की सहायता । अंगविक्रति-रुशा स्री० [सं० ] अपस्मार। मरूगी वा मिरगी रोग । मृच्छ सेग । अंगविक्षप-संज्ञा पुं० [ सं० ] (१) अंग हिष्टाना । चमकाना । मट- काना । बोलते, वक्तता देते वा गाते समय हाथ, पैर, सिर आदि का हिलाना। (२) नृत्य । नाच | (३) कलाबाज़ी । अ्रंगविद्या-संज्ञा त्नी० [ सं० ] शरीर के चिद्यं को देखकर जीवन की घटनाओं को बतछाने की विद्या । शरीर की रेखाओं से शुभाशभ फल कहने की कटा । सामुद्िक विद्या । अंगविश्रम-संजा पुं० [ सं० ] अंगआंति। एक रोग श्सिमें रोगी अंगों को और का और समझता है । अंगदशधशिल्य-संज्ञा पुं० [ सं० ] बदन की सुरती । अंग का ढीला- पन । थकावट । अंगशोष-संज्ञा पुं० [ सं० ] एक रोग जिसमें शरीर क्षीण होता वा सूखता है । सुखंडी रोग । . सं० ] रति संयोग | मेथुन । संभोग । ५ की अज्ज+सम्प्रेश्ष | अंग नामक देश । ढिं ० अससंस्कार“सैंशा पुं० [सं० ] अंगों का सँवारना। देह का बनाव सजाव । सुगंधित द्र॒ब्यों से शरीर की सजावट | अ्रंगसख्य-संशा पुं० [सं० ] अभिन्न । गाड़ी मिश्रता। गहरी दोस्ती ।




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