सीता | Sita

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Sita by पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ सीता [ दसरा मणि-मोती-रत्न आदि बहुमूल्य पदार्थ, उन्हें राहकी धूलकी तरह सुरम हां । रक्षण- देवी सीताकी इच्छासे सदा असंभव भी संमव होगा । হান__হানুল, मेने आज सुना है कि दुर मधुपुरभे र्वण नामका दैत्य घोर अत्याचार करके प्रजाको सता रहा दै । भैया, तुम सेना लेकर शीघ्र उसके विरुद्ध युद्ध-यात्रा कर दो । रत्ुघ्न--महाराजकी आज्ञा सिर-आंखोपर दै । राम- चरो, अव अन्तःपुरमं चले । दो-पहरका समय हो गया है | अब माताके पास चलकर देखूँ, उनकी पूजा समाप्त हुई या नहीं । सब ॒राज-परिवारकी कुराल-वाक्त भी पूषछनी दै । आओ, ईइधरसे धूमते हुए चर । अव समा विसजन करो ओर अंतःपुरमं चरो । ( सब्रका प्रस्थान ) दूसरा दृश्य स्थान--राजमहलका अन्तःपुर समय--सायंकाल [ सीता, उर्मिला, माण्डवी, श्रुतिकी्ति और शान्‍्ता ] सीता-- वे सब पुरानी बाते अब फिर क्या कहूँ ? कई बार तो कह चुकी हूँ । शान्ता--और एक दफा कहो । मुझसे तो तुमने एक दफा भी नहीं कही । मेरे कहनेसे ओर एक दफा कह डालो । उर्मेझा--मैं तो जितना सुनती हूँ, उतना ही और सुननेको जी चाहता है । मुझे तो वे सब बातें किसी मायामय उपन्यासकी ऐसी जान पड़ती हैं ।




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