आज का भारतीय साहित्य | Aaj Ka Bharatiya Sahitya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
447
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Dr. Sarvpalli Radhakrishnan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)असमिया १५
“अमर ती्थं' (१६२६) थी,जोकि खय्याम की रुबाईयों का एक भाव-कोमल
ओर उत्तम अनुवाद है । वे अपने गद्यकाव्यों (कथा-कविता) के लिए विख्यात ही
नही, बर्कि इस धारा मे वे एकमात्र सफल असमिया लेखक है ।
रत्नकांत बरकाकती की कविताओं में भौतिक प्रेम के कोमल भाव बड़े ही
आकर्षक और सुन्दर ढंग से व्यंजित हुए हैं। रत्नकांत को रवीन्द्रनाथ ठाकुर के
अध्ययन से, विशेषतः छन्दों के मामले मे, बहुत लाभ हुआ है। छन्द के क्षेत्र में
देवकांत बरुआं ने असमिया कविता में एक नया चमत्कार उत्पन्न किया । देवकांत
ने अपनी प्रेम-कविताओं को उस नाट्यात्मक स्वसंवाद (मोनोलॉग) के रूप में
ভাজা, জলা কি হানহ ब्राउनिंग में पाया जाता है।
डिम्बेश्वर निओग और बिनन्दचन्द्र बरुआ ने कई सशक्त भक्तिपूर्ण क्रमबद्ध
कविताओं की रचना की । उन्होने मुख्यतः असम के गौरवमय अतीत को उसके
दुखद वतमान के विरोध मे अंकित किया । जहाँ-जहाँ उन्होंने प्राचीन को फिर
से उठाया है, धैय, स्फ्ति ओर वतमान ओर भविष्यत् के लिए प्रकाश पानेके
लिए ही उठाया है। वे अपने पुरातन काल के श्रेष्ठ पुत्रों और पुत्रियों का स्मरण
करके उगती हुई पीढ़ी को उनके आदर्शों पर चलने का आदेश देते है। विदेशी
सत्ता ओर शोषण की श्यंखलाओं को तोड़कर पुनः एक समृद्ध ओर जीवन की सब
दिशाओं में प्रगतिशील असम के निर्माण का सन्देश देते हैं। साहित्य, भाषा,
संस्कृति, सब-कुछ पुन: संजीवित करना होगा । अधिक ज्वलन्त देशभक्तिपूर्ण कविता
प्रसन्नलाल चौधुरी के पयो में पाई जाती है।
इस अद्धं शताब्दी में जिन अनेक महिलाओं ने साहित्य को योगदान दिया,
उनमें नलिनीबाला देवी सबसे अधिक प्रतिभाशालिनी है । रहस्यवादी कवयित्री
के नाते नलिनीबाला देवी में अपरिभाषेय व्याकुलता है, एक ऐसी चीज़ के लिए
प्यास है, जो किसी व्याख्या मे नहीं बेधती । वही केन्द्रीय विषय उनके 'संधियार
सुरः, 'सपोनर सुर तथा 'परशमणि' नामक तीनों काव्य-संग्रहों में मिलता है ।
उनकी सभी कविताओं में एक ऐसे हृदय के दशन होते हैं जो कि जीवन के व्यापक
दुःख और दर्द से घायल है। धर्मेश्वरी देवी बरुआनी दूसरी प्रसिद्ध भक्ति-प्रधान
कवयित्री है । धर्मेश्वरी देवी के फुलर शराई' (एूलो का লীনা ) और 'प्राणर
परश' (प्राण-स्पशं ) नामक दो काव्य-संग्रह, प्रंकाशित्त हुए है । दोनों ही मे प्रकृति
` प्. अलकनन्दा लीरथक काव्य पुस्तक पर इन्हें १९६८ में सा० अ० पुरस्कार मिला।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...