विज्ञान | Vigyan

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Vigyan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उच्च स्तरीय विषयक सामग्री छपती. है । इस तरह की विज्ञान पत्रिकाओं के माध्यम से सामान्यजन मेँ विज्ञान अभिरुचि जगी है और विज्ञान लेखन के प्रति नवीन लेखकों . में उत्साह उमड़ा है | यह शुभ लक्षण है और सूचक है . इस बात का कि विज्ञान का लोकंप्रियकरण हुआ है और वह सही दिशा मे बढ़ रहा है। किन्तु पत्रिकाएं ही ` लीकंत्रियकरणः ` पत्रो तथा साप्ताहिकं पत्रो में विज्ञान लेख छपते रहे जिनमें साप्ताहिक हिन्दुस्तान, धर्मयुग, नवभारत टाइम्स प्रमुख ईहै। इनमें भी वरिष्ठ लेखक लिखते रहे है । इस अवधि `“ में विज्ञान पुस्तके भी काफी मात्रा मेँ रची ग्ई। ` 1965 के पूर्व जह्य केवल 2250 पुस्तकों के लिखे ` जाने की सूचना है वहीं 1990 तक 4350 पुस्तकों कौ सूची ` प्राप्तं है । ये पुस्तकें 3000 लेखंकों द्वारा लिखी गई हैं ` जिनमें से, 150 महिला लेखिकाएं हैं | इन समस्त लेखकों मैं 160 प्रतिष्ठित लेखक हैं । 1990 के बाद भी कुछ महत्वपूर्ण रचनाएं प्रकाशित हुई है जिनमे गुणाकर मूले ` विष्णुदत्त शर्मा, नार्लिकर आदि दर्जनों लेखकों के नाम गिनाये जा सकते हैं । म .8 . स्मरण रहै कि विज्ञान के द ण में अनुवाद , की. भूमिका अतीव, महत्वपूर्ण रही है | 1980 में ऐसे ~ अनुवादकों की संख्या 250 से अधिक थी । इनमें से बहुत <. से लेखक मौलिक लेखन तथा सम्पादन का भी कार्य कर ` रहे थे । इन अनुवाकों ने लोकप्रिय विज्ञान लेखकों के लिए ˆ महत्वपूर्णं सामग्री तथा दिशा निर्देश प्रस्तुत किया । ये . अनुवाद केवल अंग्रेजी पुस्तकों के हुए हैं । नेशनल बुक . द्रस्ट' ने बच्चों के लिए ऐसे तमाम अनुवाद कराये हैं। रेडियों तथा टेलीविजन के माध्यम से विज्ञान के . विविध अंगों को लोकप्रिय बनाने के जो प्रयास हुए हैं वे . स्वतत्रता के पश्चात्‌ ही हुए हैं। रेडियों से कृषि विषयक _ . प्रभूत सामग्री का प्रसारण होता रहा है | टेलीविजन आने से रेडियो तथा टेलीविजन दोनों के द्वारा छात्रों के लिए 14 | ` ৮০ এ ह ॥ विज्ञान की एकमात्र साधन नहीं । अनेक समाचार ` भी उपयोगी वैज्ञानिक सामग्री प्रसारित होती है। ` ` . गोष्ठियों तथा सेमिनारों में भी हिन्दी के माध्यम से वैज्ञानिक निबन्ध प्रस्तुत किये जाते रहे हैं । बाल विज्ञान लेखन एवं लोकप्रिय विज्ञान लेखन के सम्बन्ध में कार्यशालाएं भी आयोजित हुई हैं जिनमें विज्ञान परिषद्‌ प्रयाग, सी० एस० आई० आर०, दिल्ली, कृषि विश्वविद्यालय, पन्तनगर तथा भाषा निधि ' लखनऊ के ¦ प्रयास उल्लेखनीय हैं । हर्ष की बात है कि शोध स्तरीय सामग्री के प्रकाशन द हेतु अब अनुसंधान पत्रिकाएं भी प्रकाशित कीजा रही है) भारत की. सम्पदा जैसे विश्वकोश के प्रकाशन ने विज्ञान साहित्य के सर्वागी लोकप्रियकरण को प्रमाणित कर दिया है । इतना ही नहीं, अनेक पुस्तकों पर विशिष्ट पुरस्कार प्रदान किये गये हैँ तथा दहिन्द्री के विज्ञान लेखन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर लेखकों को सम्मानित भी किया जा रहा সই किन्तु देश की जनसंख्या को देखते हुए और विज्ञान में नित नूतन हो रही खोजों से देशवासियों को परिचित कराते रहने के लिए लोकप्रियकरण की आवश्यकता बनी ही रहेगी ! पीढ़ी-अन्तराल को देशी भाषा के द्वारा नवीनतम वैज्ञानिक' सूचना प्रदान करके ही पाटा जा सकेगा । यह गोष्ठी स्वतंत्रता पूर्व विज्ञान के लोकप्रियकरण ' के लिए उत्तरदायी विशिष्ट लेखकों के योगदान पर चर्चा करने के उद्देश्य से विज्ञान प्रसार' के सहयोग से आयोजित है| हम इस गोष्ठी में भाग लेने वाले सुधीजनों का स्वागत करते हैं । हमें विश्वास है कि इस द्विदिवसीय गोष्ठी मे अत्यन्त महत्वपूर्णं सामग्री प्रकाश मे आवेगी ।@ नि जनवरी - मार्च 1996




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