प्राचीन भारतीय परम्परा और इतिहास | Prachin Bhartiy Parampara Aur Itihas

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Prachin Bhartiy Parampara Aur Itihas by रांगेय राघव - Rangaiya Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका डः ही संबंध हो चुका था क्योंकि ऋग्वेद में प्राचीन गाथाओं को जहाँ वेद निर्माता ऋषि ने स्मरण किया है वहाँ इनके प्रभाव स्पष्ट हो जाते हैं। द्रविड़ युग में भारत में उत्तर में अनेक जातियाँ रहती थीं जिन पर विद्वानों ने विचार नहीं किया । यह्‌ जातियां थी--ऋषक्ष, वानर, असुर, देत्य, दानव, यक्ष, राक्षस, गंधवे, किन्नर इत्यादि । इन जातियों में वानर अपने वस्त्रों मे वैसेही पशु की खाल ओढ़ते थे जसे पूर्व वांशिक मिस्र में एक प्रचलित रिवाज था ।*? यही वानरों की पूछ थी। और यह जाति सूर्य को वानर के रूप में पूजती थी। ऋशक्ष भी वानरों के समान टाटम जाति थी । अन्य उप- युक्त जातियों के समान यह जातियाँ भी चेहरे पर नकली चेहरा छगाती थी । नकली चेहरा मास्क' लगाने की प्रथा तिब्बत से यूरोप तक मिली हैं । दक्षिण भारत के कथकलि नृत्य में अभी तक नकली चेहरे বাধ जाते हे । चेहरे बदलने के कारण ही संभवत: इन्हें इच्छारूप और कामचारी कहा गया । इन जातियों में कबीले थे । कही दास- प्रथा थी, कही नही थी । बसे वानर भी राजा चुनते थे, महलों में रहते थे । यक्ष और रक्ष का धातु मूल एक है। राक्षस और कुबेर कहे भी भाई जाते हे । इनके समाज में दासप्रथा थी । कुबर नरवाहन था । सोना उसके पास अपार था। समाज में स्त्री विछास की वस्तु ही न थी। पहले नर-नारी संबंध स्वतंत्र रहे थे जो व्यक्ति- गत संपत्ति बनने पर भी स्त्री को बच्चा पैदा करने वाली मशीन नही बना सकी । यही अप्सरा थी । राक्मों नेस्त्रीको दासी बनाया। वे उसका अपहरण करने लगे । यक्ष काम के उपासक थे, रक्ष शिव के । दोनों में युद्ध हुआ । काम पराजित हज । परंतु वाद में राक्षसों पर भी प्रभाव पड़ा । इस समय देव जाति आई और ईरान में इसे असुर मिले । देव यज्ञ करते थे । तब उनमें मातृसत्तात्मक व्यवस्था थी। शतपथ ब्राह्मण ७.४.२.४० में उल्लेख हे कि देव सूर्य के, मनुष्य सोम तथा असुर अग्नि के उपासक थे। देव पृथ्वी के ही वासी थे (१४.३. २. ४) । देवों में अंगिरा ने अग्नि को शमी वक्ष में पाया। पुराना अग्निवंश भगु का था। भूग और भाव असुरों के मित्र थे। जब देव अयरान में आये वे वरुण असुर के शासन में रहे उस समय उनमें पितृसत्तात्मक व्यवस्था आ गई थी । इंद्र ने स्वराज्य स्थापित किया । वरुण की मृत्यु के बाद बल वृसय के पुत्र वृत्र व्यंस को मारकर, जो खेती के लिये नदियों का पानी इन्हें नही देता था इन्द्र राजा हुआ। इन्द्र एक व्यक्ति नही पद था। प्रारं- भिक इन्द्र अस्थि से लड़ा था, परवरत्तों इंद्र अयस से । देवों का यक्षादि से संबंब हुआ । देव- असुर संबंध बढ़े । देवों ने छल से असुरों को हराया । उस समय नागों ने इन्हें सहायता दी । परिणामस्वरूप देवासुर संग्राम के बाद जब नागों और सुपर्णों का युद्ध हुआ। देव नागों की ओर से उठे । सुपर्णो ने हरा दिया । देवों ने सुपर्णों से संधि कर ली । देवों में पहले यज्ञ आदिम साम्यवाद का प्रतीक था। मय की उपासना से बलि का ` १. पंचानन २३५ पृ°।




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