शरत् - प्रतिभा | Sharat ~ Pratibha

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Sharat ~ Pratibha by सुबोध चन्द्र - Subodh Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ शरत्‌-प्रतिभा उपन्यासका काम है । वर्जीनिया उब्फ, जेम्स जेयेस आदि लेखक इसी श्रणीके उपन्यास लिखकर यशस्वी हुए हैं। इन सब तकों ओर आलोचनाओंको छोड़कर, एक सहज बात स्मरण करनेसे ही उपन्यासका स्वरूप पकडमे आ जायगा । उपन्यास मनुष्यके हृदयका चित्र है। मनुष्यके धर्म है, समाज है, राजनीति है, सचेतन ओर अवचेतन आपा है । अन्थकार किसी भमी एक लक्षणको अपनी दश्िमं रख सकता हे; किन्तु उसे यद्‌ स्मरण रखना दोगा किं मनुष्यके स्वरूपकी अभिव्यक्ति दी उसका आददा दै; किसी एक विशेष लक्षणको समग्र व्यक्तिवसे विच्छिन्न अथवा अट्ग करनेपर वह নিল सजीव नहीं रहता । # केवल समाज-बन्धन, केवट धम; केवल राष्ूनीति, केवट बाह रकी घटना या केवल ड्रबे हुए चतन्यको लेकर उपन्यास लिखनेसे वह एकदेशदर्शी होगा, एकांगी चिच होगा, सम्पूण नहीं । लेखककी रुचिके अनुसार इनमेंसे कोई एक उपादान प्रधानता प्राप्त कर सकता है; किन्तु वह्‌ अगर अन्य सव उपादानोंको फीका या निष्प्रम कर दे तो काम न चलेगा । १ बंग-साहित्यमें पहला उपन्यास कोन है, इसका विचार करना होगा। प्राचीन साहित्यकी जो सब पोथियों हमारे हाथ आई हैं, उनमें उपन्यासत्व॒ नहीं पाया जाता 1 जान पड़ता है, उपन्यास विशेष रूपसे आधुनिक कालकी सष्टि है। नी कहनेकी प्रवृत्ति सनातन है। अतएव बंग-साहित्यका जब प्रारम्भ हआ होगा, तब कहानियाँ लिखी गई होंगी । किन्तु चाहे जिस कारणसे हो हानिर्यो स्थायी नहीं हयो सकी ] उपन्यास लिखकर सारित्यकी सि करनेकी चेष्टा वत्तेमान युगमें ही विशेष कर प्रचलित हुई है । कोई कोई मानते हैं कि “ आलालेर घरेर ভা ? बंगसाहित्यका पहला उपन्यास है। इसमे कदानी दहे, सामाजिक चित्र हे, वास्तवता या यथाथता मी + अति आधुनिक येखक चेतनाक्रा सृक्ष्मतम विइलेषण करते समय मनुष्यके समग्र ज्यक्तित्वकी बात भूर जाते है । इसीसे उनकी रचनाम कृतित्वका अभाव न रहनेपर भी पाठकको जान पड़ता है कि मनुष्य कोई सजीव पदाथ नहीं है, वह एक दर्पणमात्र है, जिसके ऊपर नाना प्रतिबिंब पड़ते हैं ओर हट जाते हैं ।




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