शरत - प्रतिभा | Sarat-pratibha

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Sarat-pratibha by सुबोध चन्द्र - Subodh Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंकिमचस्ध रपीलनाथ) शस्यस्द _ श्ष ममी दिपोमि प्रम्न उठाया है। यासपके साहित्यके सम्पत्षमें यह कपन सन्यूण रुफसे स्पगू हो सऊता है दि नहीं इस बारमें तक ठठ सस्ता ऐ--ब”्स वी दा सकती है। बापम, बहा पोरपसे अ्रधियांश साहित्पि केइस प्रधन ढग्के ही नहीं रु गय॑, प्रश्तण मीमाँता रूकर मी ठपरियित हुए हैं। किल्नु ऊपरकी यद डक्कि शरपवनत्दकी रचनाक सम्ज्धमे सन्यूम रूपस समय होती इ। समजमें था खोग उत्पीड़िय और ह्यछिप है. उनके जीअनक्ो शरतूदलम अप्ऐी तरह सौचा- समझा है, गम्मीर मास उनका अनुशीसन ओर अप्ययन दिया ६। उनके पपवेशकम गदराइ है, निरुपम सख्यान फय्मुपम्ध रूपस पारीरीक साथ किया कै, उन शणनतमें घरसतण्विता है आर उनप्ी इन विपगाअको सप्र छांग बानते हैं। पद्ोपर मौ उन्दोंन रशठ्रनापरी रप्पइ हुए रीटिका शी अपनाया ६--रसीया सद्वारा ॑िपा है। किलु रनकी मालियता प्रशर॑रित नोतिड़ दिख्य विद्ो” करमेमें अधिक प्रकट हुए ऐ । उ शान सामाश्ि सम्स्पाक्षी को” मीमासा बनेगी चेश नहींबी एप प्रप्तक्षा उत्त ऊह्ाने नहीं दिया; किलु ठन्दाने शमाइदारा दरिष्त प्रपीड़ित बनाकर इृदयमें प्रदेश रिया ६ भर ठनठी औरस चज्न किपा इ कि लो सम्राश छमा करना नएहीं छानभा स्पनेश्स्प करना नहीं दानता, उमर्सप्प करना था डिसीऊ दुस्स-मुख्फ्रों समधना नहीं जानता, उतरा शौरब किस बातमें इं! उसऊे हिधि-निरपक मूहमें अयर को३ शक्ति है, ता यह डाएंगी शफ्ति है! पडिमरलने छा जब) नरित्र भदित ढिय एें टसमेंस का-काद दारतरूस्फो र्चनार्मे झिर्स णी ठठ हें, रिल्तु उनका सासूप परह्स गया है। शबस्स्नी शो गइरंपर घर प्रन्स कार्टरक स्पय ची गई थी गए “श्मनत्रझ टफ़्पा- समे एक पन्‍्नामाप इ। गिएशद मी प्रजरेपर शट्दर राज”क राय नी गा थौ। य्यें एग्ल्जनत्र पद काना चाइत हैं हि पधपि पिरागन बुल्छा स्थाग दिया घा-परस तनिकपस गन थी हथाये रद उसठ्ा मनमुझझा पात्र नहीं | पिरागाट एसुबदशी भाररिया सचनाआमेस हे। पत्ते एए शसाहखफ साथ भरना मत प्रकट नहीं बर पाय। काएग «सिमिदद्ध भर दृपपूरगापी रदनाभाक अस्‍तरशो शुन्त्ना ऋगर बग्नी रे सो शरसदणों अपल्लका परिशा रचनाओं आाभप ना धसा। आय अरैर इश्दासझ




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