अप्सरा | Apsara

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Apsara by दुलारेलाल - Dularelal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अप्सरा शक, इडन-गार्डेन में, क्त्रिम सरोवर के तट पर; एक कुज कै बीच, शाम सात बजे के क़रीब, जलते हुए एक प्रकाश-स्तंभ के नीचे पड़ी हुई एक कुर्सी पर, सन्नह साल की 'चंपे की कली- सी एक किशोरी बेठी हुई, सरोवर की लहरों पर चमकती हुईं चाँद की किरणें ओर जल पर खुले हुए, काँपते, बिजली की. बत्तियों के कमल के फूल एकचित्त से देख रही थी। और दिनों से आज उसे कुछ देर हो गई थी। पर इसका उसे खयाल न था। , युवती एकाएक चोंककर काँप उठी। उसी बेंच पर एक गोरा बिलकुल उससे सटकर बैठ गया। युवती एक बग्चल हट गई। फिर कुछ सोचकर, इधर-उधर देख, घबराई हुईं, उठकर खड़ी हो गई । गोरे ने हाथ पकड़कर जबरन बेंच पर बैठा लिया । युवत्ती चीख उठी । ' बांग्र में, उस सभय इक्के-दुक्‍्के आदसी रह गए थे युवती ने इधर-उधर देखा, पर कोई नज़र न आया। स्य से; प्सका कंठ भी रुक गया। अपने आदमियों को पुकार




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