विराग | Virag
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम জা ]
फिर शयन कन्ष तक आयी ,
वह् मन्थर गति से चलती।
पहुँची गवाक्ष से भीतर ,
नव द्यृति का स्रोत उगलती ॥
मणि-किरणो से टकरायी ,
नीलम मणियो के तम मे।
कुछ क्षण तक वहाँ ठिठक कर ,
वह पड़ी रही विभ्रम मे ॥
अनुरजित होकर उसका--
भी वर्ण हुआ था नीला।
करता था चकित वहो का-
वह वातावरण रेगीला॥
मणिमय पङ्क विद्धा था,
जिस पर कुमार थे लेटे।
লিজ सीमित तन मे जग का-
सौन्दथं असीम আজই ||
इस भाँति न जाने कब तक,
वह रूपाम्त का पीती।
जिसने सुरपुर के अमृत,
की सहिमा भी थी जीती ॥
पर् इतने मे ছা सन्मति-
ने सुन्दर दृग-युग खोला।
जिसमे ही मलक रहा था,
्न्तस्तल उनका भोला ॥
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