श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि | Srimantrarajgunkalpamahodadhi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विपय
चारों शुद्ध ध्यानों के अधिकारी
-विपयाचुक्रमणिकाः
~ निश्चल भंगः को ध्यानत्त्द *
अन्य योगी-ध्यान-दैतु
प्रथम शुक्र ध्यान का आलरूम्बन
अन्तिम दो ध्यानों के अधिकारी
योग से योगान्तर प गमन
संक्रमण तथा व्यान्रुत्ति
पूणीस्याखी योगी कै गुण
~~
००५
৬
৪৪৬
11)
७०७
००
৬০
৮৮৬
_अविचार से युक्त एकतव ध्यान का स्वरूप -*-
मन का अपणु में स्थापन
मनः स्थैर्यं का फल _.
ध्यानाग्नि के प्रडबलित होने पर योगीन्द्र को फर प्राति तथा
उसका महत्व , _
৬৬
৮৬
৮৮৪
111
१०७
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००४
कर्मो की अधिकता होने पर योगी को. समुद्घात करने की
- आवश्यकता
दण्डादि का विश्वान
दृएडादि विधानके पश्चात् ध्यान विधि तथा उस का फल.
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৬
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धचुमव सिद्ध निम तन्वा कणन ***
चित्त के विश्षिप्त आदि चार सेद् तथा उन का सरूप ˆ`
'निरारूस्त्र ध्यान सेवन का उपदेश व उस को विधि *९*
चहिरात्मा व अन्तरोत्माका खरूप ***
- परमात्मा का खरूप
[व् श
योगी का कत्तेंड्य
आत्मध्यान का फरले
०५०
4.४
117)
तत्त्वज्ञान प्रकर होने का हेतु
शुरुसेवन की आज्ञा.
शुरू-महिसा নত
शुत्ति का ओौदाद्लीन्य करना --`
सद्भूदप तथा कामना का त्याग
भोदासतीन्य महिसा '-
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