बुन्देलखण्ड की प्राचीनता | Bundelkhand ki prachika

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Bundelkhand ki prachika by गोपालप्रसाद शुक्ल - Gopalprasad Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) वहाँ रहकर वहाँ की प्राकृतिक शोभा, ऐतिहासिक स्थानो के ধলানহীনী श्रौर जातियो के नामकरण की संस्कृत व्युत्पत्तियों मे रमा रहना विज्येषेः प्रिय था। भीलोन, राहतगढ, पिठोरिया, दलपतपुर, एरण, बड़ोह, पठारी, त्योदा, उदयपुर ( का देहरा ) आदि हमारी जन्मभूमि के आसपास अवस्थित है। श्ञाँसी मे संबन्धी श्री नाथुराम चौबेके घर हमारे परिवार के एक-दो सदस्य सदा रहते ग्रायेहे, उनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहां होती रहीरहै। मुभे भी वहाँ रहने का अवसर मिला और मैने आसपास की अरण्यानियो ( ब्रह्ममाला, बरुआसागर, ओरछा आदि स्थानों ) मे पर्यंटल करके उसका उपयोग रूप लाभ उठा लिया । सन्‌ १९५६ के ग्रीष्मावकाश से छतरप्र, खजुराहो, पन्‍ता, नागीद और सतना के निकटवर्ती क्षेत्रो मे भ्रमण करके वहाँ की विशेषताओं का अध्ययन किया । बुन्देलखण्ड मे बिखरी जातियो और रीति-रिवाजों के मूल को खोजने की जिज्ञासा बचपन से ही मत मे घर कर गयी थी । कोई मार्गदर्शक नही मिला फिर भी मुझे नैराश्य ने नही घेरा । मन मे उठ हुए वे प्रश्न अज्ञात मन के किसी कोने में पड़े रहे। सन्‌ १६६३ ई० मे बुन्देलखण्ड के प्रक्ृत अध्ययन के अवसर पर वेद, वाल्मीकीय रामायण, महाभारत और पराणो के अथाह समद्र मे गोता लगाते समय वे मेरे पुवंसंस्कार सहायकके रूपमे एक एक करके सामने भा खड़े हुए । अतः मेरा यह अवगाहन स्वान्त.सुखाय सिद्ध हुआ । ग्वर्‌ या गवर्‌ महाभारत और पुराण आदि साहित्य मे 'शबर” तथा “शवर' दोनो प्रकार के पाठ मिलते है । 'शबर' নাভ জাঘিলগ্রল: दृष्टिगोचर होता है । वैयाकरण इसे गत्यथ॑ंक ५/ दव्‌ ( शव ) धातु से अर प्रत्यय या “शवं राति व्युत्यत्ति दिखाकर क' प्रत्यय करते हे । वस्तुतः व्युत्पत्ति द्वारा कसकर इसका संस्कृतीकरण किया गयाहै। शम्बर ओर शम्बरमेभी इसी प्रकारका दैविध्यहै। सर्व॑ पाठ भिलता है--शम्बर', पर व्युत्पत्ति करते समय वैयाकरण बना देते है हसे-- शम्बर' । राउत अथवा रावत लोग राउत और रावत दानो शब्दो को जाति-विशेषण समझते रहे है । मे भी यह पहेली हल नही कर पा रहा था। इसे हल न कर सकते का मुख्य कारण था--दो असमान जातियो के साथ उक्त रब्दो का जुड़ना । भजयगठ ओर गुजरात के शिलालेख पढ़ने पर समाधान मिल गया । राउत या रावत




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