शरत् साहित्य | Sharat Sahitya
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दद्य | प्रथम अकर १३
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कभी कोई भी अन्याय मैंने नहीं किया आज तक। दया करके मुझे छोड
दीजिए,--
जीवानन्द---( अछज़ देकर ) महावीर---
पोडशी---( मरे आतकके रोकर ) आप मुझे जानसे मार डाल सकते हैं,
सगर---
जीवानन्द--अच्छा, ये बहादुरीकी बातें कस्ना उन लोगोंकी कोठरीमें
जाकर । महावीर--
षोडसी--{ जमीनपर रोटकर रोती हुई ) किसीकी मजाल नहीं जो मेरे प्राण
रहते मुझे यहँसि के जा सके । मेरी जो कुछ दुर्दशा हो,--मुझपर जितना भी
अत्याचार हो, सब आपके सामने ही हो,--आज भी आप ब्राह्मण हैं, आज
भी आप भले घरानेके शरीफ खानदानके हैं !
जीवानन्द--( कठोर निष्ठुर हँसी हँसते हुए) तुम्हारी बातें सुननेर्मे तो
बुरी नहीं हैं, लेकिन रोना देखकर मुझे दया नहीं आती । मैं बहुत सुना
करता हूँ । औरतापर मेरा इतना लोम नहीं,--अच्छी न लमनेसे उन्हें में
नौकरोको दे दिया करता हूँ । तुम्हें भी दे देता,--सिर्फ आज ही पहले-पहल
मोह-सा पैदा हो गया है । ठीक माह्म नहीं पढ़ता,--नशा उतेरे बिना ठीक
अन्दाज नहीं बैठता ।
महावीर--( दरबजेके पास आकर ) हुजूर ।
जीवानन्द---( सामनेके फ़िबाडकी ओर डेंगलीसे इशारा करके ) इसको आज
रात-भरके लिए, उस कोठरीमें बन्द कर दे | कल फिर देखा जायगा ।
षोडशी--( ऑसू-भरी ऑ्खोसे ) मेरे सर्वनाशके बारेम जरा सोच देखिए
हुजूर | कल मैं फिर किसीको मुँह भी न दिखा स्वूगी ।
जीवानन्द--सिफं दो-एक दिन । उसके बाद दिखा सकोगी ।--उप्,
लीवरका दर्द आज संबेरेसे ही मालूम हो रहा था। अब अचानक जोरका बढ़
गया,---अब ज्यादा दिक मत करो,--जाओ ।
महावीर--( घुडककर ) ओरे उठ न छुगाई,--चल !
जीवानन्द--( जोरकी एक डॉट बताकर ) खबरदार, सूअरका बचा, अच्छी
तरह ब्रात कर ! फिर अगर कभी हमरे वगर हुकमके किसी ओरतको पकड़
खाया तो बन्दूकसे उड़ा दगा । ( सिरका तक्तिया पेर्के पास खींच अयि पठकर
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