शरत् साहित्य | Sharat Sahitya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Sharat Sahitya  by धन्यकुमार जैन - Dhanyakumar Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'

Add Infomation AboutDhanyakumar JainSudhesh'

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दद्य | प्रथम अकर १३ ५+५~५«+ ^~^~~~^~~~~~-~-~ ~~~ ~~~ ^+ ^~ कभी कोई भी अन्याय मैंने नहीं किया आज तक। दया करके मुझे छोड दीजिए,-- जीवानन्द---( अछज़ देकर ) महावीर--- पोडशी---( मरे आतकके रोकर ) आप मुझे जानसे मार डाल सकते हैं, सगर--- जीवानन्द--अच्छा, ये बहादुरीकी बातें कस्ना उन लोगोंकी कोठरीमें जाकर । महावीर-- षोडसी--{ जमीनपर रोटकर रोती हुई ) किसीकी मजाल नहीं जो मेरे प्राण रहते मुझे यहँसि के जा सके । मेरी जो कुछ दुर्दशा हो,--मुझपर जितना भी अत्याचार हो, सब आपके सामने ही हो,--आज भी आप ब्राह्मण हैं, आज भी आप भले घरानेके शरीफ खानदानके हैं ! जीवानन्द--( कठोर निष्ठुर हँसी हँसते हुए) तुम्हारी बातें सुननेर्मे तो बुरी नहीं हैं, लेकिन रोना देखकर मुझे दया नहीं आती । मैं बहुत सुना करता हूँ । औरतापर मेरा इतना लोम नहीं,--अच्छी न लमनेसे उन्हें में नौकरोको दे दिया करता हूँ । तुम्हें भी दे देता,--सिर्फ आज ही पहले-पहल मोह-सा पैदा हो गया है । ठीक माह्म नहीं पढ़ता,--नशा उतेरे बिना ठीक अन्दाज नहीं बैठता । महावीर--( दरबजेके पास आकर ) हुजूर । जीवानन्द---( सामनेके फ़िबाडकी ओर डेंगलीसे इशारा करके ) इसको आज रात-भरके लिए, उस कोठरीमें बन्द कर दे | कल फिर देखा जायगा । षोडशी--( ऑसू-भरी ऑ्खोसे ) मेरे सर्वनाशके बारेम जरा सोच देखिए हुजूर | कल मैं फिर किसीको मुँह भी न दिखा स्वूगी । जीवानन्द--सिफं दो-एक दिन । उसके बाद दिखा सकोगी ।--उप्‌, लीवरका दर्द आज संबेरेसे ही मालूम हो रहा था। अब अचानक जोरका बढ़ गया,---अब ज्यादा दिक मत करो,--जाओ । महावीर--( घुडककर ) ओरे उठ न छुगाई,--चल ! जीवानन्द--( जोरकी एक डॉट बताकर ) खबरदार, सूअरका बचा, अच्छी तरह ब्रात कर ! फिर अगर कभी हमरे वगर हुकमके किसी ओरतको पकड़ खाया तो बन्दूकसे उड़ा दगा । ( सिरका तक्तिया पेर्के पास खींच अयि पठकर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now