सैद्धांतिक चर्चा | Seddhantik Charcha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ जून * ६४६३ है और गांथां १६८ मे क्रमवर्तीका अर्थ दिया गया है। गाथा १६७ यहां पसे गमन करनेरूप अर्थमे प्रसिद्ध . कम एक घातु है । इस घातुका पादविक्ेपरूप श्रपने श्रथंको उल्लघन न करनेसे,जो क्रमण करता -है बह क्रम है ऐसा सिद्ध होता है.।” गाथा १६८ मे जिस कारणसे पर्याये यह क्रमके साथ रहती हैं श्रथवा वह , क्रमरूपसे भवनझील है अथवा क्रम ही है बर्तनेवाला जिसका यह ही भ्र्थंसे क्रमवर्ती है ।” € (पर्ययं क्रमबद्धः' হরর ८--देखिये यह दो गाथा स्पष्टरूपसे दर्शाती हैं कि उत्पादरूप पर्यायको क्रमरूप कहो वा क्मवर्ती कहो परन्तु, उसका अर्थ एक ही होता है कि सब पर्याय पादविक्षेपकी तरह क्रमबद्ध ही होती. हैं, कमसे वर्तंना ऐसा उंसका स्वभाव है, परन्तु किसी भी पर्यायका स्वभाव अक्रम प्र्यात्‌ आगे पीछे होनेका है ही नही यह उत्पादरूप पर्यायका प्र है। . श्री ऽ वचनसारमे गाथा ५५ मे पर्यायको “पदे पदे”- ऐसे शब्द द्वारा सम्बोधन किया है प्रवचनसार गाथा १३३. मे -“प्रतिपदम” इस शब्द्‌ दारा पर्यायको सम्बोधित किया है, इससे भी.पिद्ध होता दै कि पर्यायका दूसरा नाम पग, काल-चाल, और.पाद होता है, श्रौर. हरेक पर्याय नियमितरूपसे अपने अपने कालमें होती है किन्तु श्रागे पीछे नही होती । है , > - पर्योयमाला और क्रमबृद्ध एकार्थ है. , , - »' प्रवचनसार गाथा २३मे टीकाप्रे लिखाहै कि “श्ञेय ते लोक और अलोकके विभागसे विभक्त श्रनन्त-पर्याय-मालासे ,प्रालिमित स्व रूपसे सूचित (प्रगट, ज्ञात) नाशवान दिखाई देता हुआ भी श्रुव ऐसा षट्द्वव्य समूह श्र्थात्‌ सब कुछ है ।” এ श्री प्रवचनसार गाथा ६६ टीका तथा गाथा' १०७ में “प्रति सम्यवर्ती पूर्व उत्तर पर्यायोने” गाथा २३ मे “पर्यायमाला” गाथा




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