हिंदी विश्व - भारती भाग - १ | Hindi Vishv Ki Khani Part-i
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
60 MB
कुल पष्ठ :
702
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
कृष्ण वल्लभ द्विवेदी - Krishn Vallabh Dvivedi
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श्रीनारायण चतुर्वेदी - Srinarayan Chaturvedi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आहशाश की बातें... :
चला | शनि के चारों शोर एक वलय ( छंल्ला ) है;
शुक्र में वैसे ही कलाएँ दिखलाई पढ़ती हैं, जैसी चद्गमा
में ; मंगल में धारियाँ दिखलाई पहइ़ती हैं, जो शायद नहरें
हैं| संभव है ये कृत्रिम हों श्रोर वहाँ जीवधारी भो हों,
इत्यादि ।
गत साठनसत्तर वर्षों मे ज्योतिष-संबत्धी श्रनुसंधान ने
दूसरा मार्ग पकडा है। अब आाकाशीय पिंडों की रासा-
यनिक बनावट की जॉच होने लगी । जिम यत्र से इन
গ্লাহলধঅনন্ধ आविष्फारों का सफल दोना सभव दद्या,
वही छोटा-सा शीशे का ठुकढ़ा है, जो भाड़-फानूसों
मे सजावट क लिए लगा रदता है। इसमें तीन पहले
होती ई श्रौर इसलिए, त्रिपाश्व कहलाता है। इसके द्वारा
देखने से चीज़ें रंग-विरंगी दिखलाई पढ़ती हैं शोर इन्हीं
रंगों को देखने से ग्राकाशीय पिंडों को रासायनिक बना-
बट, तापक्रम इत्यादि का पता चला। इन श्रनुसधानों
में फाणेग्राफी से भी पूरी सहायता ली जाती है।
पिद्जञे तीष-चालीस- वपां में तारों प९ विशेष ध्यान दिया
गया है। तारे ज्योतिषियों की दृष्टि में पहले केवल बिन्दु-
सरीखे थे। न उनमें गति थी कि वे गणित ज्योतिषियों को
>्यि लगते शोर न वे इतने बड़े थे कि उनकी विशेष
जानकारी प्राप्त होने को सभावनी देखकर भौतिक ज्योतिष-
प्रेमी उनकी ओर ऊ्ुुकते | परतु अब ज्योतिषियों के यंत्र
इतने शक्तिशाली द्वोते हैं श्रौर साथ ही अब गशित,
भीतिफ विज्ञान और रसायनशासत्र का ज्ञान इतना बढ़ा-
चढ़ा है फ्लि ऐसे रोचक प्रश्नो का भी उत्तर मिल गया है;
जैसे, तारे गिनती में कितने हैं; वे कितनी दूर हैं; वे
कितने बढ़े हूँ; फ्रितने भारी हैं; उनकी भौतिक ओर
रासायनिक बनावट क्या है; वे क्रिस -प्रफार जन्म लेते,
युग होते और मरते हैं; हमारी एथ्वी और सूर्य का
जन्म समवतः कैसे द्रा होगा; इत्यादि । `
इनमें से प्राय' सभी प्रश्नों का उत्तर अत्यंत आश्चर्य-
जनक है | पता चला है कवि कुछु चमकोीले तारे भी इतनी
दूर हैं कि वहाँ से पृथ्वी तक प्रकाश के श्राने में लाखों
वर्ष लगते हैं | यद्यात्रि प्रकाश इतना शीघगामी है कि वह
केवल एक सेकंड मँ १,८६,००० मील चल लेता है | ज्येष्ठा
तारा इतना बढ़ा है कि उसमें ७,००,००,००,००,००,०००
पृथ्वियोँ समा जायंगी | कुछ तारे इतने हलके द्रव्य के बने
हैं कि वे गुब्यारों में भरे जानेवाले गेंसों से कहीं अधिक
इलके हूँ, और इसके विपरीत कुछ तारे इतने ठोस हैं कि
यदि कोई अपनी अंगूठी में नग के बदले उनका एक टुकढ़ा
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हमारा निकट पडीसी-मंगल ग्रह
जिस पर दिखाई पढ़नेचाली कृत्रिम सी धारियों को कोई वैज्ञा-
निक नहरें बताता है श्लौर कोई हरे भरे खेत या घन |
इन्द्दीं के आधार पर वहाँ जीवधार्यों के होने का भी
अनुमान किया जाता है ।
[ फोटो नाउर्यट विह्न वेधशाला की कृपा से प्रा †
जड़वा ले तो अंगूठी तौल में श्राठ मन की हो जायगी |
प्रसिद्ध हास्यरष के लेखक्र माकरं टुवेनने अपनी कहानी
केप्टेन स्टॉमफील्ड की आकाश यात्रा” में एक घटना लिखी
है, जिसमें श्रवश्य ही लेखक ने यथाशक्ति असीम अति
शयोक्ति की है। एक देवदूत गुब्बारे पुर चढ़कर विश्व का
नक़शा देखते गया, जो नाथ म र्होड द्वीप ( क्षेत्रफल लग-
मग १००० वग मील ) के वरावर था! श्रभिप्राय था
ভুত और इसके ग्रहों की ध्थेति जानना । लौटने पर दूत ने
कष्टा करि शायद नक़शे में सौर जगत था तो, पर उसे
संदेह यह हो रहा था कि कहीं वह किसी मक्खी का चिह्न
न रहा हो !
परन्तु अतिशयोक्ति के बदले कइने में कुछ कमी ही रद्द
गई । आधुनिक अनुसंधानों के आ्राधार पर बने सारे मारत-
वर्ष के वराबर विश्व के मानचित्र में भी हमारा सौर
जगत् केवल सुई की नोक के बरावर होगा । मार्क द्वेन के
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